मैंगोस्टीन की खेती मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है और इसे फलों का राजा भी कहा जाता है, इसकी विशेषता इसके मीठे और खट्टे स्वाद में है। इस फल की खेती के लिए सही जलवायु और मिट्टी का चयन बेहद जरूरी होता है। मैंगोस्टीन के पेड़ की वृद्धि काफी धीमी होती है और इसे फल देने में लगभग 7 से 10 साल का समय लग सकता है। हालांकि, एक बार यह फल देना शुरू करता है तो इसकी खेती लंबे समय तक लाभदायक हो सकती है। इसे उगाने के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। बहुत अधिक ठंड या बहुत गर्म मौसम इसके विकास के लिए हानिकारक हो सकते हैं। मैंगोस्टीन के पौधे को छायादार वातावरण पसंद है और इसके लिए नमी वाली जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके साथ ही, इसे ऐसी जगह उगाना बेहतर होता है जहाँ हवा का संचलन अच्छे से हो, ताकि फफूंद और अन्य बीमारियों से बचा जा सके।
इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी दोमट या बलुई दोमट मानी जाती है, जो कि अच्छी जल निकासी वाली हो। जलभराव वाली मिट्टी में यह पौधा अच्छे से विकसित नहीं होता है क्योंकि इससे जड़ सड़ सकती है और पौधा धीरे-धीरे मर सकता है। मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने के लिए जैविक खाद का उपयोग करना बेहद महत्वपूर्ण है। नर्सरी में बीज से तैयार किया गया पौधा जब लगभग 1 साल का हो जाता है, तब उसे खेत में स्थानांतरित किया जाता है। खेत में पौधे को लगाने से पहले जमीन की अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए और उसमें जैविक खाद मिलाना चाहिए ताकि मिट्टी में पोषक तत्व भरपूर हों। पौधे को लगाने के लिए 6-8 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदे जाते हैं, जिनमें जैविक खाद, गोबर की खाद, और कुछ मात्रा में रासायनिक उर्वरक मिलाया जाता है ताकि पौधे को सभी जरूरी पोषक तत्व मिल सकें।
मैंगोस्टीन के पौधे को नियमित रूप से पानी की आवश्यकता होती है, विशेषकर प्रारंभिक वर्षों में जब पौधा नाजुक होता है। गर्मियों के मौसम में इसे प्रति सप्ताह कम से कम दो बार पानी देना आवश्यक होता है ताकि पौधे की नमी बरकरार रह सके। वहीं मानसून के समय में जलभराव से बचने के लिए पानी देने की आवृत्ति कम कर दी जाती है। पौधे की जल आवश्यकताओं को पूरा करते समय यह ध्यान देना जरूरी है कि मिट्टी में पानी जमा न हो, क्योंकि इससे जड़ों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, पौधे की जड़ों को बढ़ावा देने और मिट्टी की हवा अवशोषण क्षमता को बेहतर बनाने के लिए समय-समय पर मिट्टी की जुताई और ढीलापन बनाए रखना चाहिए।
मैंगोस्टीन की खेती में कीट और बीमारियों का प्रबंधन बेहद जरूरी है क्योंकि यह फसल विभिन्न प्रकार की फफूंद और कीटों से प्रभावित हो सकती है। पौधे पर मुख्य रूप से जड़ गलन, पत्ती धब्बा रोग, और फल सड़न की समस्या हो सकती है। इसके लिए जैविक कीटनाशक और फफूंदनाशक का नियमित उपयोग किया जाता है ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके। इसके अलावा, पौधों के आसपास के क्षेत्र में खरपतवार को समय-समय पर हटाना और भूमि को साफ रखना भी बेहद महत्वपूर्ण है ताकि पौधे की जड़ों को सही पोषण और हवा मिल सके। जैविक तरीके से कीट प्रबंधन करना किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद होता है, साथ ही यह पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है।
पौधों के स्वस्थ विकास के लिए पोषक तत्वों का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण होता है। पौधों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश जैसे मुख्य तत्वों की आवश्यकता होती है, जो फसल की अच्छी वृद्धि और फलने-फूलने में सहायक होते हैं। मैंगोस्टीन की खेती में जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट, और हरी खाद का उपयोग पौधों के विकास को बढ़ावा देता है। इसके साथ ही, रासायनिक उर्वरकों का भी नियंत्रित मात्रा में उपयोग किया जा सकता है ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व समय-समय पर मिलते रहें। मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग की प्रक्रिया बेहद कारगर होती है। मल्चिंग से न केवल मिट्टी की नमी बनी रहती है, बल्कि यह खरपतवार को उगने से भी रोकता है, जिससे पौधों को अधिक पोषण मिलता है।
जब मैंगोस्टीन का पौधा 7 से 10 साल की उम्र में आता है, तब इसमें फल लगने शुरू होते हैं। मैंगोस्टीन का फल दिखने में गोल और बैंगनी रंग का होता है, जिसके अंदर सफेद रंग का गूदा होता है। यह फल स्वाद में मीठा और थोड़ा खट्टा होता है, जिससे इसकी मांग बाजार में बहुत अधिक होती है। फलों को हाथ से या कैंची की मदद से सावधानीपूर्वक तोड़ा जाता है ताकि पौधे को नुकसान न हो। एक पेड़ से लगभग 200 से 500 फल प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कि पेड़ की देखभाल, जलवायु, और पोषक तत्वों की आपूर्ति पर निर्भर करता है। फलों को बाजार में ताजगी बनाए रखने के लिए तुरंत बेचना आवश्यक होता है।
मैंगोस्टीन की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है, क्योंकि इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बड़ी मांग है। भारत में इसके फल की कीमत अन्य फलों की तुलना में अधिक होती है, जो किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय बनाता है। हालांकि, इसकी खेती में काफी धैर्य और समय की आवश्यकता होती है, क्योंकि पेड़ धीरे-धीरे विकसित होते हैं और काफी समय बाद फल देते हैं। इसके बावजूद, एक बार पेड़ में फल आना शुरू हो जाए, तो यह लंबे समय तक उत्पादन करता रहता है, जिससे किसानों को लगातार मुनाफा हो सकता है।
परिचय
- मैंगोस्टीन (Garcinia mangostana) एक बेहद महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध उष्णकटिबंधीय फल है, जिसे फलों के राजा के रूप में जाना जाता है। इसका मूल दक्षिण पूर्व एशिया से माना जाता है, और यह मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, और इंडोनेशिया जैसे देशों में विशेष रूप से उगाया जाता है। मैंगोस्टीन फल अपने मीठे और खट्टे स्वाद के कारण दुनिया भर में मशहूर है। इसके सफेद गूदे में एक बेहद विशिष्ट स्वाद होता है, जो इसे अन्य फलों से अलग बनाता है। इसके अलावा, इसके चिकित्सीय गुण भी इसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण फल बनाते हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी, और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। हालांकि, इसकी खेती करना आसान नहीं है, क्योंकि इसके पौधे की वृद्धि बहुत धीमी होती है और इसमें फल आने में 7 से 10 साल का समय लग सकता है। इसकी खेती मुख्य रूप से उन किसानों के लिए लाभकारी होती है, जो लंबी अवधि की फसलों में निवेश कर सकते हैं और इसे एक धैर्यपूर्ण व्यवसाय के रूप में अपनाते हैं।
जलवायु और तापमान
- मैंगोस्टीन की खेती के लिए आदर्श जलवायु बेहद महत्वपूर्ण है। यह एक उष्णकटिबंधीय फल है, जिसे गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। 25 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान इसकी वृद्धि के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस पौधे को ठंड सहन नहीं होती है, और यदि तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, तो पौधे को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, बहुत अधिक गर्मी भी इसके लिए हानिकारक हो सकती है, इसलिए शुष्क और गर्म क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं की जा सकती। उच्च आर्द्रता वाली जलवायु, जहां पर लगातार बारिश होती हो, मैंगोस्टीन के लिए आदर्श मानी जाती है। इसके लिए मानसूनी क्षेत्रों की खेती उपयुक्त होती है, जहाँ नमी बनी रहती है और पौधों को सूखे की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। इस फसल की खेती के लिए अच्छी बारिश और समुचित तापमान का संयोजन जरूरी होता है।
मिट्टी का चयन
- मैंगोस्टीन की खेती में मिट्टी का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसे दोमट या बलुई दोमट मिट्टी में उगाना सबसे अच्छा माना जाता है। ऐसी मिट्टी में पानी की निकासी की सुविधा होती है, जिससे जड़ें सड़ने से बची रहती हैं। इसके अलावा, मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए, जो इसके विकास के लिए अनुकूल होता है। जलभराव वाली मिट्टी में यह पौधा अच्छे से विकसित नहीं हो पाता है, क्योंकि इससे पौधे की जड़ें सड़ सकती हैं। मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए जैविक खाद का उपयोग किया जा सकता है, जिससे पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। खेत में मिट्टी की अच्छी जुताई और उसमें जैविक खाद मिलाने से पौधे को शुरूआत में ही आवश्यक पोषण मिलता है। इसके अलावा, खेत में जल निकासी के लिए अच्छे प्रबंधन की आवश्यकता होती है, ताकि बारिश के दौरान पानी खेत में जमा न हो सके और जड़ों को नुकसान न पहुंचे।
पौधों का चयन और रोपण
- मैंगोस्टीन के पौधों को बीज से तैयार किया जाता है। हालांकि, यह प्रक्रिया धीमी होती है, और बीज से पौधे को तैयार होने में लगभग 1 साल का समय लग जाता है। जब पौधा नर्सरी में तैयार हो जाता है और 1 साल का हो जाता है, तब उसे खेत में स्थानांतरित किया जाता है। पौधों को खेत में लगाने से पहले, खेत की जुताई और उसमें जैविक खाद मिलाना आवश्यक होता है। मैंगोस्टीन के पौधों को लगाने के लिए गड्ढों को लगभग 6-8 मीटर की दूरी पर खोदा जाता है ताकि पेड़ों को पर्याप्त जगह मिल सके। गड्ढों में जैविक खाद, गोबर की खाद, और वर्मी कंपोस्ट मिलाने से पौधे की वृद्धि बेहतर होती है। पौधे को सही समय पर और सही तरीके से रोपण करना इसकी लंबी अवधि की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। पौधे की वृद्धि और जड़ों के विकास के लिए इसे प्रारंभिक सालों में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
सिंचाई प्रबंधन
- मैंगोस्टीन के पौधों को नियमित और संतुलित सिंचाई की आवश्यकता होती है। पौधे की शुरुआती वृद्धि के दौरान नमी को बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसके पौधे को शुष्क वातावरण में नुकसान हो सकता है। गर्मियों के मौसम में इसे प्रति सप्ताह कम से कम दो बार पानी देना आवश्यक होता है ताकि मिट्टी की नमी बनी रहे और पौधा सुख न जाए। सर्दियों और मानसून के मौसम में सिंचाई की आवृत्ति कम की जा सकती है। अत्यधिक पानी से जड़ सड़ने का खतरा होता है, इसलिए मिट्टी की जल निकासी का ध्यान रखना जरूरी होता है। सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करना बेहतर होता है, क्योंकि यह पौधों को आवश्यक मात्रा में पानी पहुंचाने में मदद करती है, और पानी की बर्बादी भी कम होती है।
खरपतवार नियंत्रण
- मैंगोस्टीन की खेती में खरपतवार नियंत्रण एक महत्वपूर्ण पहलू है। खरपतवार पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेते हैं, जिससे पौधों को सही मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता। इसके अलावा, खरपतवार मिट्टी की नमी को भी कम कर सकते हैं, जिससे पौधों को सूखे की समस्या हो सकती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए जैविक और रासायनिक विधियों का उपयोग किया जा सकता है। जैविक विधियों में मल्चिंग तकनीक का उपयोग सबसे प्रभावी होता है, जिससे न केवल खरपतवार की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि मिट्टी की नमी को भी बनाए रखा जा सकता है। इसके अलावा, खेत की नियमित सफाई और खरपतवार हटाना जरूरी होता है, ताकि पौधे स्वस्थ और संतुलित तरीके से विकसित हो सकें।
पोषक तत्व और उर्वरक प्रबंधन
- मैंगोस्टीन के पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। पौधों के शुरुआती विकास के लिए जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट का उपयोग किया जाता है। ये खाद पौधों की जड़ों को पोषण देने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती हैं। पौधे के बढ़ने के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों का भी संयमित मात्रा में उपयोग किया जा सकता है। हर 6 महीने में पौधों के आसपास की मिट्टी में उर्वरक मिलाना चाहिए ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहें। पौधों के पोषक तत्व प्रबंधन के साथ-साथ पानी और नमी का संतुलन बनाए रखना भी महत्वपूर्ण होता है, ताकि पौधे स्वस्थ रहें और अधिक फल दे सकें।
कीट और रोग नियंत्रण
- मैंगोस्टीन की खेती में कीट और बीमारियों से पौधे को बचाना बेहद जरूरी होता है। पौधों में फफूंद, जड़ गलन, और कीटों का संक्रमण होने की संभावना होती है। कीटों से बचाव के लिए जैविक कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का उपयोग किया जा सकता है। जैविक तरीके से कीट और बीमारियों का नियंत्रण न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित होता है, बल्कि यह पौधों की गुणवत्ता को भी बनाए रखता है। इसके अलावा, समय-समय पर पौधों की जांच और उचित देखभाल करना जरूरी होता है ताकि कीटों और बीमारियों की रोकथाम की जा सके। जड़ गलन से बचाव के लिए पानी की उचित निकासी और मिट्टी की सही देखभाल आवश्यक होती है।
फल तुड़ाई और पैदावार
- मैंगोस्टीन के पौधों में फल आने में 7 से 10 साल का समय लग सकता है। जब पौधे पर फल आने शुरू होते हैं, तो उन्हें सावधानी से तोड़ा जाना चाहिए। फलों को हाथ से या कैंची की मदद से काटा जाता है ताकि पौधे को कोई नुकसान न हो। एक पेड़ से लगभग 200 से 500 फल प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कि पौधे की देखभाल, जलवायु, और पोषण की स्थिति पर निर्भर करता है। फलों को बाजार में ताजगी बनाए रखने के लिए तुरंत बेचना चाहिए, ताकि उनकी गुणवत्ता बरकरार रहे। अच्छी देखभाल और सही समय पर तुड़ाई से पैदावार में वृद्धि होती है।
बाजार और मुनाफा
- मैंगोस्टीन की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत अधिक होती है, खासकर यूरोप, अमेरिका, और मध्य पूर्व के देशों में। इसकी कीमत अन्य फलों की तुलना में अधिक होती है, जिससे किसानों को अच्छी आमदनी हो सकती है।
आवश्यक उपकरण (Tools Required) for Mangosteen Farming in Hindi
मैंगोस्टीन की खेती एक संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसमें सही उपकरणों का इस्तेमाल न केवल खेती की उत्पादकता बढ़ाता है बल्कि समय और श्रम को भी कम करता है। इन उपकरणों का सही तरीके से इस्तेमाल करना आवश्यक है ताकि खेती के सभी चरण सुचारू रूप से पूरे हो सकें। आइए विस्तार से जानते हैं कि मैंगोस्टीन की खेती के लिए कौन-कौन से उपकरण जरूरी होते हैं और उनका क्या महत्व है:
1. जुताई के उपकरण (Plowing Tools)
मैंगोस्टीन की खेती में पहली और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है मिट्टी की जुताई, जो कि पौधों की वृद्धि के लिए उपयुक्त आधार प्रदान करती है। इस कार्य के लिए ट्रैक्टर और हल जैसे उपकरणों की आवश्यकता होती है।
- ट्रैक्टर: आधुनिक खेती के लिए ट्रैक्टर एक आवश्यक उपकरण है, जो खेत की जुताई और मिट्टी की गहरी खुदाई के लिए उपयोग किया जाता है। ट्रैक्टर की मदद से मिट्टी को ढीला किया जाता है, ताकि जड़ों को बढ़ने में सहायता मिले और पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें।
- हल: छोटे किसानों के लिए पारंपरिक हल भी उपयोगी होता है। हल की मदद से मिट्टी को गहरी खुदाई करके उसमें हवा पहुंचाई जाती है, जिससे पौधे की जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो सकें।
2. सिंचाई प्रणाली (Irrigation System)
मैंगोस्टीन के पौधों को पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए सिंचाई के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली आजकल सबसे अधिक उपयोग में लाई जाती हैं।
- ड्रिप सिंचाई: ड्रिप सिंचाई प्रणाली पौधों की जड़ों तक सीधा पानी पहुंचाने का एक प्रभावी तरीका है। यह विधि पानी की बचत करती है और पौधों को उचित मात्रा में पानी उपलब्ध कराती है। खासकर मैंगोस्टीन की धीमी वृद्धि के लिए इसे उत्तम माना जाता है।
- स्प्रिंकलर सिंचाई: यह विधि खेत में पानी को एकसमान तरीके से वितरित करने के लिए उपयुक्त है। स्प्रिंकलर के जरिए पौधों के ऊपर से पानी छिड़ककर खेत की सिंचाई की जाती है, जो छोटे और बड़े दोनों खेतों के लिए उपयोगी है।
3. गड्ढे खोदने के उपकरण (Digging Tools)
मैंगोस्टीन के पौधे को रोपण के लिए 6-8 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदने की जरूरत होती है। इसके लिए कई उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
- खुदाई करने वाली मशीन (Excavator): बड़े पैमाने पर खेती के लिए खुदाई करने वाली मशीन का उपयोग किया जा सकता है, जो कि गड्ढों को तेजी से खोदने में मदद करती है। यह मशीन समय और श्रम दोनों की बचत करती है।
- फावड़ा और गैंती (Shovel and Hoe): छोटे और मझोले किसानों के लिए फावड़ा और गैंती जैसे पारंपरिक उपकरण काम आते हैं। इनकी मदद से गड्ढों की गहराई और चौड़ाई को नियंत्रित किया जाता है और यह उपकरण आसान और सस्ते होते हैं।
4. खाद और उर्वरक छिड़कने वाले उपकरण (Fertilizer Spreaders)
मैंगोस्टीन के पौधों को उचित पोषण के लिए समय-समय पर खाद और उर्वरकों की आवश्यकता होती है। इनको खेत में समान रूप से फैलाने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
- उर्वरक छिड़कने की मशीन: यह मशीन खेत में उर्वरकों और जैविक खाद को समान रूप से फैलाने में मदद करती है, जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं और खेत में अधिक उत्पादकता होती है।
- हाथ से छिड़कने वाले उपकरण (Handheld Spreaders): छोटे खेतों के लिए हाथ से छिड़कने वाले उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है। यह उपकरण उर्वरकों और खाद को पौधों के पास छिड़कने के लिए उपयोग किए जाते हैं और यह किफायती भी होते हैं।
5. खरपतवार हटाने के उपकरण (Weeding Tools)
मैंगोस्टीन की खेती में खरपतवारों से पौधों को सुरक्षित रखना जरूरी होता है, क्योंकि ये पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेते हैं। खरपतवार हटाने के लिए निम्नलिखित उपकरणों का उपयोग किया जाता है:
- मल्चिंग मशीन: मल्चिंग की प्रक्रिया पौधों के चारों ओर खरपतवार को रोकने और मिट्टी की नमी बनाए रखने में मदद करती है। यह जैविक विधि होती है, जो पर्यावरण के अनुकूल होती है और इसके लिए मल्चिंग मशीन का उपयोग किया जाता है।
- खरपतवार निकालने वाली मशीन (Weeder Machine): यह मशीन खेत में खरपतवार को हटाने का काम करती है, जिससे पौधे को नुकसान नहीं होता और पौधों की वृद्धि अच्छी होती है।
- हाथ से चलने वाले उपकरण (Hand Weeder): छोटे खेतों में खरपतवार निकालने के लिए हाथ से चलने वाले उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है। यह विधि मैनुअल होती है, लेकिन छोटी खेती के लिए प्रभावी मानी जाती है।
6. फल तुड़ाई के उपकरण (Harvesting Tools)
मैंगोस्टीन के फल को तुड़ाई के लिए सावधानी से काटना जरूरी होता है ताकि पौधे को नुकसान न पहुंचे।
- हाथ कैंची (Pruning Shears): मैंगोस्टीन के फलों को सावधानीपूर्वक तुड़ाई के लिए हाथ कैंची का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण फलों को तने से काटने के लिए उपयुक्त होता है।
- ट्रिमर और कटर (Trimmers and Cutters): बड़े पैमाने पर फसल तुड़ाई के लिए ट्रिमर और कटर जैसे उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है, जो तुड़ाई की प्रक्रिया को आसान और तेज बनाते हैं।
7. भंडारण और परिवहन उपकरण (Storage and Transportation Tools)
मैंगोस्टीन के फल को तुड़ाई के बाद सही तरीके से भंडारित और परिवाहित करना जरूरी होता है ताकि उनकी गुणवत्ता बरकरार रहे।
- प्लास्टिक के क्रेट (Plastic Crates): तुड़ाई के बाद फलों को भंडारण के लिए प्लास्टिक के क्रेट में रखा जाता है, जो फलों को सुरक्षित रखते हैं और उन्हें क्षति से बचाते हैं।
- कूलिंग यूनिट्स (Cooling Units): यदि फलों को लंबे समय तक भंडारित करना हो, तो कूलिंग यूनिट्स का उपयोग किया जाता है। यह यूनिट फलों की ताजगी बनाए रखने में मदद करती है।
- ट्रैक्टर-ट्रॉली और ट्रक (Tractor Trolley and Trucks): फलों को बाजार या गोदाम तक पहुंचाने के लिए ट्रैक्टर-ट्रॉली या ट्रक का उपयोग किया जाता है। यह परिवहन के लिए सबसे उपयुक्त और सुरक्षित तरीका होता है।
मैंगोस्टीन की सफल खेती के लिए इन उपकरणों का सही उपयोग बेहद आवश्यक है। ये उपकरण न केवल खेती की उत्पादकता को बढ़ाते हैं बल्कि किसानों के श्रम को भी कम करते हैं, जिससे खेती अधिक प्रभावी और मुनाफे वाली हो जाती है।