लहसुन की खेती भारत में एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसका उपयोग घरेलू और औद्योगिक रूप से किया जाता है। यह अपने विशेष स्वाद और औषधीय गुणों के कारण प्रसिद्ध है। लहसुन की खेती से किसानों को आर्थिक लाभ मिलता है, लेकिन इसके लिए सही तकनीक और जानकारी की आवश्यकता होती है ताकि अधिक उपज और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। लहसुन की खेती की संपूर्ण प्रक्रिया में जलवायु, मिट्टी, बुवाई का समय, सिंचाई, फसल सुरक्षा, और फसल कटाई का सही ज्ञान होना आवश्यक है।

लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। लहसुन ठंडे और शुष्क मौसम में बेहतर तरीके से पनपता है। इसके विकास के लिए 12-24 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है। यदि तापमान इससे कम होता है, तो पौधों का विकास धीमा हो सकता है, जबकि अधिक तापमान फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। लहसुन की खेती के दौरान बहुत ज्यादा बारिश या अत्यधिक नमी फसल को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि इससे फफूंद जनित रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए शुष्क और नियंत्रित वातावरण लहसुन की खेती के लिए आवश्यक है। साथ ही, ठंड के मौसम में उचित समय पर बुवाई करने से कंद का विकास बेहतर होता है।

लहसुन की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव भी बहुत महत्वपूर्ण है। दोमट और बलुई दोमट मिट्टी, जिसमें अच्छी जल निकासी होती है, लहसुन की खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। यदि मिट्टी में जल ठहराव हो, तो यह फसल की जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है और सड़न का कारण बन सकता है। मिट्टी की उर्वरता भी एक महत्वपूर्ण कारक है। लहसुन की खेती के लिए पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। अगर मिट्टी अत्यधिक अम्लीय है, तो इसे चुने के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है, जबकि क्षारीय मिट्टी में सल्फर मिलाने से सुधार किया जा सकता है। खेती से पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो और जड़ों को आसानी से पोषक तत्व मिल सकें।

लहसुन की बुवाई के समय बीजों का सही चयन अत्यंत आवश्यक होता है। लहसुन के लिए स्वस्थ और बड़े आकार की कलियों का उपयोग किया जाता है। छोटे और कमजोर बीजों से अच्छी फसल की उम्मीद नहीं की जा सकती। बुवाई से पहले बीजों को कुछ घंटों के लिए धूप में सुखाना चाहिए ताकि बीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े और अंकुरण दर बेहतर हो सके। बीजों को बुवाई के समय लगभग 4-5 सेंटीमीटर गहराई में रोपा जाता है। बुवाई की गहराई पर ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि बहुत गहराई में बुवाई करने से अंकुरण धीमा हो सकता है और अधिक उथली बुवाई से पौधे कमजोर हो सकते हैं। पंक्तियों के बीच 20-25 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए ताकि पौधों को आवश्यक स्थान मिल सके और वे बेहतर विकास कर सकें।

लहसुन की खेती में सिंचाई का सही प्रबंधन आवश्यक होता है। बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है ताकि बीज अच्छी तरह से अंकुरित हो सकें। इसके बाद, 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए, खासकर जब मिट्टी सूखने लगे। यदि फसल के दौरान अत्यधिक पानी दिया जाता है, तो इससे जड़ों में सड़न और फफूंद का खतरा बढ़ सकता है। पकने के समय, सिंचाई की मात्रा को कम करना चाहिए, ताकि कंद का आकार और गुणवत्ता अच्छी हो सके। अंतिम सिंचाई फसल कटाई से लगभग 10-15 दिन पहले रोक देनी चाहिए ताकि कंद सूख सकें और उन्हें आसानी से संग्रहित किया जा सके।

लहसुन की फसल को रोगों और कीटों से बचाने के लिए भी विशेष ध्यान देना आवश्यक है। लहसुन में मुख्य रूप से जड़ गलन, पत्तियों पर धब्बे, और फफूंद जनित रोग देखने को मिलते हैं। इन रोगों को रोकने के लिए जैविक और रासायनिक रोगनाशकों का उपयोग किया जा सकता है। बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवाओं में उपचारित करना चाहिए ताकि फसल रोगमुक्त रहे। इसके अलावा, फसल के दौरान नमी नियंत्रण और मिट्टी की अच्छी जुताई से भी रोगों की संभावना कम की जा सकती है। फसल की नियमित जांच और देखभाल से कीटों और बीमारियों का समय पर पता लगाया जा सकता है, जिससे फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।

लहसुन की फसल की कटाई का सही समय फसल की गुणवत्ता और उपज पर निर्भर करता है। जब पौधे के पत्ते पीले होकर सूखने लगते हैं, तब लहसुन की फसल कटाई के लिए तैयार होती है। फसल को हाथों से उखाड़ा जाता है, और फिर उन्हें 2-3 दिनों तक धूप में सूखने दिया जाता है ताकि कंदों में नमी न रहे। सूखने के बाद, लहसुन की गांठों को साफ करके संग्रहित किया जाता है। लहसुन को ठंडी और सूखी जगह पर संग्रहित करना चाहिए ताकि वह लंबे समय तक सुरक्षित रह सके और खराब न हो।

लहसुन की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है, लेकिन इसके लिए सही जानकारी और देखभाल की आवश्यकता होती है। अच्छी मिट्टी, सही जलवायु, और उचित सिंचाई के साथ ही फसल की सुरक्षा और कटाई का सही समय जानकर लहसुन की खेती से उच्च गुणवत्ता और अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

परिचय

लहसुन (Allium sativum) एक अत्यधिक महत्वपूर्ण और बहुपयोगी मसाला फसल है, जिसका उपयोग भारतीय भोजन और औषधीय उद्देश्यों में बड़े पैमाने पर होता है। इसका उत्पादन दुनियाभर में होता है, और भारत इसका एक प्रमुख उत्पादक देश है। लहसुन में विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट और कई औषधीय गुण होते हैं, जो इसे एक बहुमूल्य फसल बनाते हैं। इसके अलावा, इसका उपयोग औद्योगिक उत्पादों जैसे कि अचार, मसाला पाउडर और औषधियों में भी किया जाता है। किसानों के लिए लहसुन की खेती आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक लाभकारी है, बशर्ते कि वे सही तकनीकों और प्रक्रिया का पालन करें।

जलवायु और तापमान

लहसुन की खेती के लिए शुष्क और ठंडा मौसम सबसे उपयुक्त माना जाता है। 12-24 डिग्री सेल्सियस का तापमान इसके कंद के विकास के लिए आदर्श होता है। ठंड के मौसम में सही समय पर बुवाई करने से लहसुन की कलियाँ बड़े आकार की और बेहतर गुणवत्ता वाली बनती हैं। 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर लहसुन की फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे फसल की गुणवत्ता कम हो सकती है।

लहसुन की खेती के दौरान अधिक नमी या अत्यधिक बारिश फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए इसे शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है, जहां ठंडा और सूखा वातावरण लहसुन के विकास के लिए अनुकूल होता है।

मिट्टी की तैयारी

लहसुन की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो। मिट्टी का पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए। इस सीमा से बाहर की मिट्टी में फसल का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। यदि मिट्टी अधिक अम्लीय हो तो चुना डालकर उसकी अम्लीयता को संतुलित किया जा सकता है। इसी प्रकार, क्षारीय मिट्टी में सल्फर डालकर उसका पीएच संतुलित किया जा सकता है।

मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो और पौधों की जड़ों को उचित पोषक तत्व मिल सकें। बुवाई से पहले खेत में अच्छी मात्रा में गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और पौधों को लंबे समय तक पोषक तत्व मिलते रहते हैं।

बीज का चयन और बुवाई

लहसुन की खेती के लिए बीजों का सही चयन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। केवल स्वस्थ, बड़ी और रोगमुक्त कलियों का ही चयन करना चाहिए, क्योंकि इससे पौधे अधिक उत्पादक और मजबूत बनते हैं। कमजोर और छोटे बीजों से कम उपज होती है और फसल की गुणवत्ता भी घटती है।

बुवाई का सही समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच होता है। इस समय में मौसम ठंडा और शुष्क होता है, जो लहसुन की वृद्धि के लिए अनुकूल होता है। बुवाई से पहले बीजों को धूप में कुछ घंटों के लिए सूखा लेना चाहिए, ताकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके और उनका अंकुरण बेहतर हो सके।

बीजों को 4-5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए, और पंक्तियों के बीच 20-25 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए ताकि पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। बीजों के बीच की दूरी लगभग 10-15 सेंटीमीटर होनी चाहिए, ताकि पौधों को पर्याप्त हवा और धूप मिल सके।

सिंचाई प्रबंधन

लहसुन की फसल के लिए सिंचाई का सही प्रबंधन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। बुवाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि बीजों का अंकुरण तेजी से हो सके। इसके बाद फसल के विकास के हर चरण में सिंचाई की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से तब जब खेत की मिट्टी सूखने लगे। 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए।

फसल के पकने के समय सिंचाई की मात्रा को कम कर देना चाहिए, ताकि कंदों का आकार अच्छा हो और उनमें नमी की मात्रा नियंत्रित रहे। फसल कटाई से लगभग 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए ताकि कंद पूरी तरह से सूख सकें और संग्रहण के लिए तैयार हो सकें।

उर्वरक और खाद

लहसुन की खेती में उचित पोषण के लिए खेत में जैविक और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना आवश्यक है। बुवाई से पहले खेत में गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसल को बेहतर पोषक तत्व मिलते हैं।

रासायनिक उर्वरकों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का सही अनुपात में उपयोग किया जाना चाहिए। बुवाई के 30-40 दिनों बाद नाइट्रोजन का दूसरा डोज देना चाहिए, ताकि पौधों का विकास तेजी से हो। पौधों में नाइट्रोजन की कमी के लक्षण पत्तियों के पीले पड़ने से दिखाई देते हैं, जिसे उर्वरक डालकर संतुलित किया जा सकता है।

फसल की देखभाल और रोग नियंत्रण

लहसुन की फसल में कई प्रकार के रोग और कीट लग सकते हैं, जिनमें मुख्य रूप से जड़ गलन, फफूंद जनित रोग, और पत्तियों पर धब्बे शामिल हैं। इन समस्याओं को रोकने के लिए जैविक कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।

बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करना चाहिए ताकि वे रोगमुक्त रहें। इसके अलावा, फसल की नियमित जांच करें और यदि कोई रोग या कीट दिखाई दे, तो तुरंत उपचार करें। खेत में नमी और पानी की सही मात्रा बनाए रखना रोग नियंत्रण में मदद करता है।

फसल कटाई

लहसुन की फसल 5-6 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पौधों के पत्ते पीले होकर सूखने लगते हैं, तब समझ लें कि फसल कटाई के लिए तैयार है। कटाई के लिए पौधों को हाथ से उखाड़ा जाता है और उन्हें 2-3 दिनों तक धूप में सूखने दिया जाता है।

सुखाने के बाद, लहसुन की गांठों को साफ करके संग्रहित किया जाता है। लहसुन को ठंडी और सूखी जगह पर संग्रहित किया जाना चाहिए ताकि वह लंबे समय तक खराब न हो और उसकी गुणवत्ता बरकरार रहे।

संग्रहण और विपणन

लहसुन की फसल की कटाई और सुखाने के बाद उसे सही ढंग से संग्रहित किया जाना चाहिए। सूखी और ठंडी जगह पर लहसुन को स्टोर करने से उसकी शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है। स्टोरेज के दौरान नमी और अधिक गर्मी से बचाव करना चाहिए, क्योंकि इससे फसल खराब हो सकती है।

लहसुन की फसल का बाजार मूल्य आमतौर पर अधिक होता है, और इसकी मांग पूरे वर्ष बनी रहती है। किसान अपनी फसल को उचित मूल्य पर बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। लहसुन के बेहतर मूल्यांकन और विपणन के लिए किसानों को बाजार के रुझान पर ध्यान देना चाहिए।

निष्कर्ष

लहसुन की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय है, लेकिन इसके लिए सही जानकारी और तकनीकों की आवश्यकता होती है। उचित जलवायु, मिट्टी, उर्वरक, सिंचाई और रोग प्रबंधन के साथ लहसुन की फसल से उच्च गुणवत्ता और बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है। किसानों को सही तकनीकों का पालन कर लहसुन की खेती को अधिक लाभकारी बनाने का प्रयास करना चाहिए।

लहसुन की खेती के लिए आवश्यक उपकरण (Tools Required in Garlic Farming)

लहसुन की खेती में उच्च गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त करने के लिए विभिन्न उपकरणों और मशीनों का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण खेत की तैयारी, बुवाई, सिंचाई, निराई-गुड़ाई, कटाई और संग्रहण में सहायक होते हैं। सही उपकरणों का इस्तेमाल करके खेती को न केवल आसान बनाया जा सकता है, बल्कि इससे उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में भी वृद्धि होती है। नीचे लहसुन की खेती के लिए आवश्यक प्रमुख उपकरणों की विस्तृत जानकारी दी जा रही है:

1. हल (Plough)

हल खेत की जुताई के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। यह मिट्टी को भुरभुरा बनाने, मिट्टी में उर्वरक और जैविक खाद को मिलाने और मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। हल का उपयोग मुख्य रूप से मिट्टी की पहली जुताई के लिए किया जाता है, जिससे खेत की गहराई से मिट्टी तैयार हो सके और बीजों का अंकुरण बेहतर हो।

  • बैलों से चलने वाला हल: पारंपरिक खेती में इसका उपयोग किया जाता है, खासकर छोटे और मध्यम आकार के खेतों में।
  • ट्रैक्टर से चलने वाला हल: बड़े खेतों में ट्रैक्टर द्वारा संचालित हल का उपयोग किया जाता है, जिससे जुताई का काम जल्दी और प्रभावी ढंग से किया जा सके।

2. रोटावेटर (Rotavator)

रोटावेटर एक उन्नत खेती उपकरण है, जिसका उपयोग मिट्टी को भुरभुरा करने और मिट्टी की ऊपरी परत को समान रूप से फैलाने के लिए किया जाता है। यह मिट्टी में मौजूद जड़ों, घास, और अन्य अनावश्यक सामग्री को निकालता है और बीजों के लिए बेहतर वातावरण प्रदान करता है। रोटावेटर का इस्तेमाल खेत की दूसरी जुताई या बुवाई से पहले मिट्टी की तैयारी के लिए किया जाता है।

3. कुदाल (Hoe)

कुदाल खेत में निराई-गुड़ाई करने के लिए एक महत्वपूर्ण हाथ का उपकरण है। इसका उपयोग फसल के आसपास की मिट्टी को ढीला करने, खरपतवार निकालने और जल निकासी के लिए नालियों को तैयार करने में किया जाता है। छोटे और संकरे स्थानों में काम करने के लिए यह बेहद उपयोगी होता है, जहाँ मशीनों का उपयोग संभव नहीं होता।

4. डिब्बलर (Dibbler)

लहसुन की कलियों की बुवाई के लिए डिब्बलर का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण मिट्टी में समान गहराई पर छेद बनाने में सहायक होता है, जिससे बीजों को सही दूरी और गहराई पर बोया जा सके। यह विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए फायदेमंद है, जो मैन्युअल तरीके से बुवाई करना चाहते हैं।

5. बीज ड्रिल मशीन (Seed Drill Machine)

बड़े स्तर पर लहसुन की खेती करने वाले किसानों के लिए बीज ड्रिल मशीन का उपयोग अधिक प्रभावी होता है। इस मशीन के द्वारा एक ही समय में कई पंक्तियों में बीजों की बुवाई की जा सकती है, जिससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है। बीज ड्रिल मशीन से बुवाई की गहराई और बीजों के बीच की दूरी सही प्रकार से बनाए रखी जाती है।

6. सिंचाई के उपकरण (Irrigation Tools)

लहसुन की फसल के लिए उचित मात्रा में पानी आवश्यक होता है, इसलिए सिंचाई के विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया जाता है:

  • फव्वारा सिंचाई प्रणाली (Sprinkler Irrigation System): यह प्रणाली छोटे बूंदों के रूप में पानी को फैलाकर पूरे खेत में समान रूप से पानी पहुंचाती है, जिससे फसल को नमी की सही मात्रा मिलती है।
  • ड्रिप सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation System): यह प्रणाली फसल की जड़ों के पास धीरे-धीरे पानी पहुंचाती है, जिससे जल की बचत होती है और पौधों को आवश्यकतानुसार पानी मिलता है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली लहसुन की फसल के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि यह मिट्टी को अधिक गीला नहीं करती और जल की बर्बादी को रोकती है।

7. स्प्रे पंप (Spray Pump)

लहसुन की फसल में रोग और कीट नियंत्रण के लिए स्प्रे पंप का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण फसल पर जैविक और रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों को छिड़कने के लिए महत्वपूर्ण है। छोटे खेतों के लिए मैन्युअल स्प्रे पंप का उपयोग किया जा सकता है, जबकि बड़े खेतों के लिए बैटरी चालित स्प्रे पंप या ट्रैक्टर-माउंटेड स्प्रेयर का उपयोग किया जाता है।

8. हैंड वेडर (Hand Weeder)

लहसुन की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से चलने वाले वेडर का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण फसल के पास उगने वाले अनचाहे पौधों को हटाने के लिए सहायक होता है। हाथ से खरपतवार निकालने में यह उपकरण अधिक सुविधाजनक होता है और जड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना फसल के आसपास के क्षेत्र को साफ करता है।

9. कटाई के उपकरण (Harvesting Tools)

लहसुन की फसल की कटाई के लिए हाथ से चलने वाले उपकरणों और मशीनों का उपयोग किया जाता है:

  • खुरपा (Sickle): खुरपा एक पारंपरिक हाथ का उपकरण है, जिसका उपयोग लहसुन के पौधों को काटने के लिए किया जाता है।
  • खुदाई यंत्र (Harvesting Machine): बड़े खेतों के लिए आधुनिक कटाई मशीन का उपयोग किया जा सकता है, जो एक ही समय में बड़ी मात्रा में पौधों को उखाड़ने और कटाई करने में सक्षम होती है। यह समय और श्रम दोनों की बचत करती है।

10. भंडारण के उपकरण (Storage Tools)

लहसुन की फसल को कटाई के बाद सही तरीके से भंडारित करने के लिए उचित भंडारण उपकरणों की आवश्यकता होती है:

  • सुखाने के लिए ट्रे (Drying Trays): कटाई के बाद लहसुन को धूप में सुखाने के लिए ट्रे का उपयोग किया जाता है, जिससे नमी कम हो जाती है और कंद अच्छी तरह से सूख जाते हैं।
  • वेंटिलेटेड क्रेट्स (Ventilated Crates): लहसुन की फसल को संग्रहित करने के लिए वेंटिलेटेड क्रेट्स का उपयोग किया जाता है, जिससे हवा का प्रवाह बना रहता है और लहसुन लंबे समय तक ताजा रहता है।
  • कोल्ड स्टोरेज (Cold Storage): बड़े पैमाने पर उत्पादित लहसुन को लंबे समय तक ताजगी बनाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है, जिससे उसकी गुणवत्ता बनी रहती है और खराब होने की संभावना कम होती है।

लहसुन की खेती में उपर्युक्त उपकरणों का सही उपयोग करके न केवल फसल की गुणवत्ता और उपज में वृद्धि की जा सकती है, बल्कि खेती की प्रक्रिया को अधिक सुविधाजनक और समयबद्ध भी बनाया जा सकता है। किसानों को आधुनिक और पारंपरिक दोनों प्रकार के उपकरणों का सही मिश्रण करके उपयोग करना चाहिए, जिससे उन्हें अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Explore More

Cassava Farming in Hindi: कसावा. की खेती कैसे करें (Kassava Ki Kheti Kaise Karein)

कसावा, जिसे मणिोक के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण कंद वाला पौधा है जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह पौधा न केवल

Zucchini Farming in Hindi: तोरी की खेती कैसे करें (Tori Ki Kheti Kaise Karein)

तोरी या ज़ुचिनी खेती एक लाभदायक फसल है, जो कम समय में अधिक उत्पादन देती है। यह सब्जी गर्म जलवायु में अच्छी तरह उगती है और इसकी खासियत है कि

Corn (Maize) Farming in Hindi: मक्का की खेती कैसे करें (Makka Ki Kheti Kaise Karein)

मक्का (कॉर्न) खेती एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो दुनियाभर में फसलों के उत्पादन में एक प्रमुख स्थान रखती है। मक्का की खेती केवल खाद्य सामग्री के लिए नहीं, बल्कि