तोरी या ज़ुचिनी खेती एक लाभदायक फसल है, जो कम समय में अधिक उत्पादन देती है। यह सब्जी गर्म जलवायु में अच्छी तरह उगती है और इसकी खासियत है कि इसे विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में प्रयोग किया जा सकता है। तोरी की खेती के लिए उचित जलवायु, मिट्टी, बीज चयन, सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन और रोग प्रबंधन का ध्यान रखना आवश्यक है। इन सभी तत्वों का सही ढंग से पालन करने पर तोरी की फसल से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।

तोरी की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है। यह सब्जी न केवल गर्मियों में बल्कि बसंत में भी उगाई जा सकती है। इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली हल्की काली मिट्टी, बलुई मिट्टी या दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए। मिट्टी की तैयारी के लिए पहले खेत को जुताई करें और फिर इसे समतल करें। यदि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी है, तो उसमें कंपोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाने की सिफारिश की जाती है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है और फसल की वृद्धि में सुधार होता है।

तोरी के बीज का चयन करते समय, उच्च गुणवत्ता और रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। बाजार में उपलब्ध विभिन्न किस्मों में ‘दुबाई’, ‘काले’, ‘अंग्रेजी’ और ‘बैक्टीरिया’ शामिल हैं। उच्च गुणवत्ता वाले बीजों से अच्छी फसल सुनिश्चित होती है। बीजों को बोने से पहले, 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें, ताकि अंकुरण बेहतर हो सके। इसके अलावा, बीजों को बोने से पहले उचित कीटनाशक का उपचार करना भी फायदेमंद होता है, जिससे बीजों को कीटों और रोगों से बचाया जा सके।

बीज बोने का समय आमतौर पर मार्च से मई तक होता है। बीजों को 2 से 3 इंच की गहराई पर बोया जाना चाहिए और 2 से 3 फीट की दूरी पर रोपण करना चाहिए। यह सुनिश्चित करें कि हर पौधे के बीच पर्याप्त जगह हो, ताकि पौधे विकसित हो सकें और हवा का प्रवाह भी बना रहे। इसके अलावा, रोपाई के बाद पौधों की स्थिति पर नज़र रखना जरूरी है, ताकि यदि कोई पौधा कमजोर दिखता है, तो उसे हटा कर नया पौधा लगाया जा सके।

सिंचाई का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। तोरी के पौधों को नियमित अंतराल पर पानी दें, विशेषकर गर्मी के मौसम में। पहली सिंचाई बीज बोने के एक सप्ताह बाद करनी चाहिए और फिर हर 7 से 10 दिन के बाद सिंचाई करें। सिंचाई के समय, यह ध्यान रखें कि पानी पौधों की जड़ों तक पहुँच जाए। फसल के विकास के दौरान, मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग का प्रयोग करें। मल्चिंग से मिट्टी का तापमान स्थिर रहता है और खरपतवार की वृद्धि भी नियंत्रित होती है।

फसल में उचित उर्वरक का उपयोग भी जरूरी है। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम युक्त उर्वरक का उपयोग करें। शुरुआती चरण में नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है, जबकि फूल आने के समय फास्फोरस और पोटेशियम की आवश्यकता बढ़ जाती है। उर्वरक को खेत में लगाने के बाद अच्छी तरह से मिलाने के लिए जुताई करें। इसके अलावा, जैविक खाद का उपयोग भी फसल के लिए लाभदायक होता है। इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में सुधार होता है और फसल की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

तोरी के पौधे आमतौर पर 40 से 50 दिन में फल देने लगते हैं। फल की कटाई तब करनी चाहिए जब वह छोटे और मुलायम हों, क्योंकि बड़े होने पर उनका स्वाद खराब हो जाता है। फसल की कटाई सुबह के समय करनी चाहिए, जब फल ठंडे होते हैं। कटाई के दौरान पौधों की देखभाल करें, ताकि अन्य फलों को नुकसान न पहुंचे। कटाई के बाद, फलों को अच्छी तरह से धोकर और सुखाकर बिक्री के लिए बाजार में भेजें।

तोरी की खेती में प्रमुख बीमारियाँ जैसे पत्ते झुलसना, फफूंदी, और कीटों का प्रबंधन करना आवश्यक है। रोगों से बचने के लिए, बीजों को बोने से पहले उपचारित करें और खेतों की सफाई पर ध्यान दें। कीटों के लिए, उचित कीटनाशकों का उपयोग करें और जैविक तरीकों को अपनाएं। अगर किसी भी बीमारी का संकेत दिखाई दे, तो तुरंत कार्रवाई करें, ताकि फसल पर इसका प्रभाव न पड़े।

तोरी की खेती एक लाभकारी उद्यम है, लेकिन इसके लिए सही तकनीक और समय पर देखभाल आवश्यक है। सही फसल प्रबंधन के साथ, तोरी की खेती से अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। यह न केवल किसानों के लिए फायदेमंद है, बल्कि बाजार में भी इसकी मांग लगातार बनी रहती है। ताजा और स्वादिष्ट तोरी की सब्जियाँ न केवल ग्राहकों को आकर्षित करती हैं, बल्कि इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है, जिससे इसकी लोकप्रियता और बढ़ती है। कृषि क्षेत्र में तोरी की खेती का एक महत्वपूर्ण स्थान है, और यह छोटे तथा बड़े किसानों दोनों के लिए एक सुरक्षित और लाभकारी विकल्प है।

परिचय

तोरी, जिसे ज़ुचिनी के नाम से भी जाना जाता है, एक लोकप्रिय सब्जी है जो Cucurbita pepo प्रजाति से संबंधित है। यह सब्जी अपनी मुलायम और हल्के स्वाद के लिए जानी जाती है, और इसका उपयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है, जैसे सलाद, सूप, और स्टर-फ्राई में। तोरी की खेती एक सरल और जल्दी पकने वाली फसल के रूप में देखी जाती है, जिससे किसान सीमित समय में अच्छी आमदनी कर सकते हैं। तोरी में उच्च पोषण मूल्य होता है, जिसमें विटामिन C, पोटेशियम, और फाइबर शामिल होते हैं। इसकी खेती न केवल किसानों के लिए लाभकारी है, बल्कि बाजार में इसकी उच्च मांग के कारण भी यह एक आकर्षक विकल्प है।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

तोरी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु सामान्यत: 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होती है। यह फसल गर्मियों में अच्छी तरह उगती है, लेकिन इसे बसंत के मौसम में भी उगाया जा सकता है। तापमान में गिरावट या अधिक ठंड तोरी के पौधों की वृद्धि को बाधित कर सकती है, इसलिए फसल लगाने से पहले मौसम की स्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है।

मिट्टी की आवश्यकता: तोरी की फसल के लिए मिट्टी की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण है। हल्की काली मिट्टी, बलुई मिट्टी या दोमट मिट्टी में सबसे अच्छे परिणाम मिलते हैं। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए, क्योंकि इस स्तर पर पौधों को पोषक तत्वों का अवशोषण करना आसान होता है।

खेत की तैयारी: खेत की अच्छी तैयारी के लिए पहले गहरी जुताई करें और फिर खेत को समतल करें। यदि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी है, तो उसमें गोबर की खाद या कंपोस्ट का उपयोग करें। यह मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करेगा और फसल की वृद्धि को प्रोत्साहित करेगा। इसके बाद, खेत में जल निकासी की व्यवस्था करना भी आवश्यक है, ताकि अधिक वर्षा में जलभराव न हो।

बीज का चयन

तोरी के बीज का चयन करते समय उच्च गुणवत्ता और रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। बाजार में उपलब्ध प्रमुख किस्मों में ‘दुबाई’, ‘काले’, ‘अंग्रेजी’, और ‘बैक्टीरिया’ शामिल हैं। इन किस्मों में से किसी एक का चयन करना फसल की गुणवत्ता को सुनिश्चित कर सकता है।

बीज का उपचार: बीजों को बोने से पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें, ताकि अंकुरण बेहतर हो सके। इसके बाद, बीजों को रोगों से बचाने के लिए उचित कीटनाशकों से उपचारित करें। इस प्रक्रिया से न केवल बीजों का अंकुरण बेहतर होगा, बल्कि फसल के शुरूआती चरण में बीमारियों का प्रभाव भी कम होगा।

बीज बोने का समय और विधि

तोरी की फसल के लिए बीज बोने का उपयुक्त समय आमतौर पर मार्च से मई तक होता है। इस समय में तापमान और मिट्टी की स्थिति तोरी के पौधों के लिए अनुकूल होती है। बीजों को 2 से 3 इंच की गहराई पर और 2 से 3 फीट की दूरी पर बोया जाना चाहिए।

रोपण प्रक्रिया:

  • पहले खेत में गड्ढे बनाएं, जिनकी गहराई 2 से 3 इंच हो।
  • गड्ढों में 2-3 बीज डालें और ध्यान रखें कि बीजों को एक समान दूरी पर रखा जाए।
  • गड्ढों को मिट्टी से ढक दें और हल्का दबाव डालें ताकि बीज मिट्टी में अच्छी तरह स्थापित हो सकें।

सिंचाई की तकनीक

तोरी के पौधों को नियमित अंतराल पर पानी देना आवश्यक है, विशेषकर गर्मी के मौसम में। पहली सिंचाई बीज बोने के एक सप्ताह बाद करनी चाहिए। इसके बाद, हर 7 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

सिंचाई की विधियाँ:

  • बूँद-बूँद सिंचाई: यह विधि पानी की बर्बादी को कम करती है और पौधों की जड़ों तक सीधे पानी पहुँचाती है। यह विधि न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता को भी बढ़ाती है।
  • फव्वारा सिंचाई: यह तकनीक भी उपयोगी है, खासकर बड़े खेतों में, क्योंकि यह समान रूप से सभी पौधों तक पानी पहुँचाती है।

उर्वरक प्रबंधन

तोरी की फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटेशियम का संतुलित अनुपात आवश्यक है।

उर्वरक का प्रयोग:

  • आरंभिक चरण: नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है, जो पौधों की पत्तियों और तनों की वृद्धि को बढ़ावा देती है।
  • फूल आने पर: फास्फोरस और पोटेशियम की आवश्यकता बढ़ जाती है, जो फलों के विकास और गुणवत्ता के लिए आवश्यक होते हैं।

उर्वरकों को खेत में लगाने के बाद अच्छी तरह से मिलाने के लिए जुताई करें। जैविक खाद का उपयोग भी लाभदायक है, क्योंकि यह मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में सुधार करता है और पौधों को प्राकृतिक पोषण प्रदान करता है।

फसल की देखभाल

तोरी के पौधे आमतौर पर 40 से 50 दिन में फल देना शुरू करते हैं। फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब फल छोटे और मुलायम हों, क्योंकि बड़े होने पर उनका स्वाद खराब हो जाता है।

कटाई का समय:

  • सुबह के समय फल की कटाई करें, जब फल ठंडे होते हैं।
  • काटते समय पौधों को ध्यान से संभालें ताकि अन्य फलों को नुकसान न पहुँचे।

रोग और कीट प्रबंधन

तोरी की खेती में प्रमुख बीमारियाँ जैसे पत्ते झुलसना, फफूंदी, और कीटों का प्रबंधन करना आवश्यक है।

रोगों से बचाव:

  • बीजों को बोने से पहले उपचारित करें।
  • खेतों की सफाई पर ध्यान दें और मृत पौधों या खरपतवारों को हटाएं।

कीट प्रबंधन:

  • उचित कीटनाशकों का उपयोग करें और जैविक तरीकों को अपनाएं।
  • यदि किसी भी बीमारी का संकेत दिखाई दे, तो तुरंत कार्रवाई करें, ताकि फसल पर इसका प्रभाव न पड़े।

लाभ और बाजार

तोरी की खेती एक लाभकारी उद्यम है। सही फसल प्रबंधन के साथ, तोरी की खेती से अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है।

बाजार में मांग: तोरी की सब्जियाँ न केवल ग्राहकों को आकर्षित करती हैं, बल्कि इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है, जिससे इसकी लोकप्रियता और बढ़ती है। ताजा और स्वस्थ तोरी की सब्जियाँ बाजार में उच्च मूल्य प्राप्त कर सकती हैं, और इसका निर्यात भी किया जा सकता है।

निष्कर्ष

तोरी की खेती एक उत्कृष्ट विकल्प है जो किसानों को न केवल आर्थिक लाभ देती है, बल्कि यह स्वस्थ और पौष्टिक सब्जियों का उत्पादन करने में भी मदद करती है। इसके सफल उत्पादन के लिए सही तकनीक और समय पर देखभाल आवश्यक है। यदि आप तोरी की खेती करने का सोच रहे हैं, तो इन सभी बिंदुओं पर ध्यान देकर सफल हो सकते हैं और अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। इस खेती के माध्यम से न केवल अपने परिवार की सेहत का ख्याल रख सकते हैं, बल्कि अपने सामर्थ्य को भी बढ़ा सकते हैं।

तोरी खेती के लिए आवश्यक उपकरण

तोरी की सफल खेती के लिए विभिन्न उपकरणों की आवश्यकता होती है, जो फसल की तैयारी, बुवाई, सिंचाई, देखभाल, और कटाई में मदद करते हैं। इन उपकरणों का सही उपयोग फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइए हम इन उपकरणों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें:

1. खेत की तैयारी के उपकरण

  • फॉर्क और जुताई की मशीन: खेत की मिट्टी को अच्छी तरह से जुताई करने के लिए आवश्यक है। फॉर्क और जुताई की मशीन मिट्टी को गहरा जुताई करके उसे समतल करने में मदद करती है। सही जुताई से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, जिससे पौधों की जड़ें बेहतर तरीके से फैल सकती हैं और पौधों को अधिक पोषण मिलता है। खेत की तैयारी के लिए दो से तीन बार जुताई करना आवश्यक है, ताकि मिट्टी में हवा और नमी का संतुलन बना रहे।
  • हॉ और कुदाल: ये उपकरण मिट्टी को ठीक करने, खरपतवार निकालने, और खेत में गड्ढे बनाने के लिए आवश्यक हैं। हॉ का उपयोग मिट्टी को नर्म और भुरभुरी बनाने के लिए किया जाता है, जिससे बीजों का अंकुरण बेहतर होता है। कुदाल का उपयोग खेत में गहरी खुदाई करने और खुराफात निकालने के लिए किया जाता है।
  • जुताई ट्रैक्टर: बड़े खेतों में जुताई के लिए ट्रैक्टर का उपयोग किया जाता है। यह जुताई और खाद डालने की प्रक्रिया को तेज करता है। ट्रैक्टर से जुताई करते समय, खेत के आकार और मिट्टी की प्रकार के अनुसार उपयुक्त जुताई उपकरण का चुनाव करना महत्वपूर्ण है। यह न केवल श्रम की बचत करता है बल्कि समय की भी बचत करता है।

2. बीज बुवाई के उपकरण

  • बीज बोने की मशीन: यह मशीन बीजों को समान गहराई और दूरी पर बोने में मदद करती है, जिससे पौधों की वृद्धि समान होती है। यह बीज बुवाई की प्रक्रिया को तेज और सटीक बनाती है। बीज बोने की मशीन का उपयोग करने से बीजों की बर्बादी भी कम होती है और पौधों के विकास के लिए आवश्यक स्थान सुनिश्चित होता है।
  • गड्डा बनाने की मशीन: इस मशीन का उपयोग खेत में गड्ढे बनाने के लिए किया जाता है, ताकि बीजों को सही गहराई पर बोया जा सके। यह गड्ढे एक समान आकार में होते हैं, जो पौधों की वृद्धि के लिए आदर्श होते हैं।

3. सिंचाई के उपकरण

  • बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली: यह प्रणाली पानी को पौधों की जड़ों तक सीधे पहुँचाती है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है और पौधों को आवश्यक नमी मिलती है। इसमें पाइप, ड्रिप ट्यूब और फिल्टर शामिल होते हैं। यह प्रणाली विशेष रूप से गर्म मौसम में लाभदायक होती है, क्योंकि यह मिट्टी की नमी को बनाए रखती है और फसल को ठंडा रखती है।
  • फव्वारा प्रणाली: इस प्रणाली में फव्वारे का उपयोग करके खेत में पानी का छिड़काव किया जाता है। यह तकनीक विशेष रूप से बड़े खेतों के लिए उपयुक्त है। फव्वारा प्रणाली के द्वारा पौधों को समान मात्रा में पानी मिलता है, और यह खरपतवारों की वृद्धि को भी नियंत्रित करने में मदद करती है।

4. फसल की देखभाल के उपकरण

  • खरपतवार हटाने की मशीन: खरपतवारों को हटाने के लिए ये मशीनें खेत में उपयोग की जाती हैं, ताकि तोरी के पौधों को उचित पोषण मिल सके। ये मशीनें समय बचाती हैं और खेत की सफाई को भी बढ़ाती हैं। खरपतवार हटाने से पौधों को प्रतिस्पर्धा से बचाने और उर्वरकों के प्रभाव को बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • फसल सुरक्षा उपकरण: फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए आवश्यक कीटनाशकों और फफूंदनाशकों के छिड़काव के लिए स्प्रेयर का उपयोग किया जाता है। स्प्रेयर विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे हाथ से चलने वाले स्प्रेयर और ट्रैक्टर द्वारा चलने वाले स्प्रेयर। इनका सही उपयोग सुनिश्चित करता है कि सभी पौधों को समान रूप से कीटनाशक मिल सके।
  • मल्चिंग मशीन: मल्चिंग मशीन का उपयोग खेत में मल्च लगाने के लिए किया जाता है, जिससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और खरपतवारों की वृद्धि नियंत्रित होती है। मल्च लगाने से मिट्टी का तापमान स्थिर रहता है और फसल की वृद्धि में मदद मिलती है।

5. कटाई के उपकरण

  • कटाई मशीन: तोरी की फसल की कटाई के लिए कटाई मशीनों का उपयोग किया जाता है। ये मशीनें समय और श्रम की बचत करती हैं और फसल को जल्दी काटने में मदद करती हैं। कटाई मशीन का चयन करते समय फसल के आकार और कटाई की आवश्यकताओं के अनुसार सही मशीन का चुनाव करना महत्वपूर्ण है।
  • हाथ की कटाई के लिए उपकरण: छोटे खेतों में या जटिल क्षेत्रों में कटाई के लिए कटिंग टूल्स, जैसे चाकू और कैंची का उपयोग किया जा सकता है। ये उपकरण छोटे और विशेष क्षेत्रों में कार्य करने के लिए उपयुक्त होते हैं, जहां मशीन का उपयोग करना कठिन हो सकता है।

6. संग्रहण और परिवहन के उपकरण

  • संग्रहण बास्केट: कटाई के बाद तोरी को इकट्ठा करने के लिए मजबूत और सुरक्षित बास्केट का उपयोग करें, ताकि फल सुरक्षित रहें और परिवहन के दौरान क्षतिग्रस्त न हों। बास्केट का आकार और डिज़ाइन ऐसा होना चाहिए कि वह फलों को सुरक्षित रूप से पकड़ सके और उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में मदद करे।
  • ट्रैक्टर-ट्रेलर: कटाई के बाद सब्जियों को बाजार में ले जाने के लिए ट्रैक्टर-ट्रेलर का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण बड़े पैमाने पर परिवहन के लिए आवश्यक है। ट्रैक्टर-ट्रेलर का चुनाव करते समय उसकी क्षमता, इंधन दक्षता और मार्ग की स्थिति का ध्यान रखना चाहिए।

7. अन्य उपकरण

  • नापने के उपकरण: फसल की गुणवत्ता और उत्पादन के लिए सही नापने के उपकरण महत्वपूर्ण हैं। वजन मशीन और मापने के बर्तन का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण किसानों को अपने उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता को मापने में मदद करते हैं, जिससे वे बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
  • पौधों की वृद्धि की निगरानी के लिए उपकरण: तापमान और मिट्टी की नमी की जांच के लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है, जो फसल की वृद्धि को सही तरीके से ट्रैक करने में मदद करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि पौधों को आवश्यक पोषण और पानी मिल रहा है।

तोरी की सफल खेती के लिए उपरोक्त उपकरणों का उपयोग आवश्यक है। सही उपकरण का चुनाव और उनका सही तरीके से उपयोग करना न केवल फसल की गुणवत्ता को बढ़ाएगा, बल्कि उत्पादन में भी वृद्धि करेगा। इसके साथ ही, ये उपकरण खेती की प्रक्रिया को सरल और अधिक प्रभावी बनाते हैं, जिससे किसानों को अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। तोरी की खेती के लिए सही उपकरणों का उपयोग करके, किसान अपनी मेहनत का उचित प्रतिफल प्राप्त कर सकते हैं।

इस प्रकार, तोरी की खेती के लिए आवश्यक उपकरणों का सही चयन और उनके उचित उपयोग न केवल किसानों की मेहनत को सार्थक बनाता है, बल्कि उन्हें एक सफल और लाभकारी खेती का अनुभव भी देता है।

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