चेरी की खेती एक लाभकारी कृषि व्यवसाय है, जो भारत के ठंडे और शुष्क क्षेत्रों में प्रमुखता से की जाती है। चेरी का वैज्ञानिक नाम Prunus avium है और यह रोसेसी परिवार का एक महत्वपूर्ण फलदार पौधा है। इसकी खेती मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों में की जाती है। चेरी का फल आकार में गोल और स्वाद में मीठा या खट्टा होता है, जो विभिन्न प्रकार की व्यंजनों और मिठाइयों में उपयोग किया जाता है। इसके पौधों को ठंडे और नमी वाले मौसम की आवश्यकता होती है, इसलिए चेरी की खेती उन इलाकों में होती है जहां सर्दियों में तापमान सामान्यतः शून्य के आस-पास रहता है।

चेरी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चुनाव महत्वपूर्ण होता है। चेरी के पौधे ठंडे मौसम में अच्छा विकास करते हैं, और इसे उगाने के लिए 1000 से 2500 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों को उपयुक्त माना जाता है। चेरी की खेती के लिए 7°C से 18°C के बीच का तापमान सबसे सही माना जाता है। ठंडे क्षेत्रों में चेरी के पौधे अच्छी तरह फलते हैं, लेकिन अत्यधिक ठंड और बर्फबारी से पौधों को नुकसान हो सकता है। चेरी के पौधों के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की अच्छी मात्रा होनी चाहिए और इसका pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अत्यधिक क्षारीय या अम्लीय मिट्टी चेरी के पौधों के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती।

चेरी के पौधों की रोपाई के लिए, बीज या ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। ग्राफ्टिंग के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों की प्राप्ति की जाती है, जो बेहतर उपज देने में सक्षम होती हैं। चेरी के पौधों को आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर के महीने में लगाया जाता है, जब मिट्टी में नमी की पर्याप्त मात्रा होती है। पौधों को 5 से 6 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है ताकि उन्हें पर्याप्त जगह मिले और वे अच्छे से बढ़ सकें। पौधों को लगाने के बाद नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, विशेषकर शुरुआती वर्षों में। सिंचाई की सही विधि अपनाने से पौधों की जड़ों को अच्छी तरह से पोषण मिलता है और उनका विकास सुचारु रहता है।

चेरी के पौधों की उचित देखभाल के लिए खाद और उर्वरक का सही समय पर प्रयोग जरूरी होता है। गोबर की खाद, कम्पोस्ट, और नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग पौधों के बेहतर विकास के लिए फायदेमंद होता है। चेरी के पौधों को साल में एक बार अच्छी तरह से काट-छांट करनी चाहिए ताकि उनमें नया विकास हो सके और उनकी उपज क्षमता बढ़ सके। फसल के दौरान पौधों को कीट और रोगों से बचाने के लिए जैविक कीटनाशक और फफूंदनाशक का प्रयोग किया जाता है।

चेरी की फसल को पकने के बाद बड़ी सावधानी से तोड़ा जाता है। चेरी के फलों को हाथों से तोड़कर सीधे टोकरी या डिब्बों में रखा जाता है ताकि वे दबकर खराब न हो जाएं। चेरी के फलों को उनके परिपक्व होने पर ही तोड़ना चाहिए, क्योंकि अपरिपक्व फलों का स्वाद उतना अच्छा नहीं होता है और उनकी बाजार में मांग कम होती है। चेरी की पैदावार मुख्य रूप से मई से जून के बीच होती है, और इसका बाज़ार मूल्य फलों की गुणवत्ता, आकार और स्वाद के आधार पर तय होता है।

चेरी की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है यदि वे आधुनिक तकनीकों और उपयुक्त प्रबंधन विधियों का उपयोग करें। चेरी के फलों को ताजा खाया जा सकता है, साथ ही उनसे जैम, जूस, और अन्य प्रसंस्कृत उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जो उनकी मांग को बढ़ाते हैं। चेरी का निर्यात भी किया जाता है, जिससे किसानों को अधिक आय होती है। अच्छी प्रबंधन तकनीक और सही बाजार रणनीति से चेरी की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय साबित हो सकती है।

परिचय

  • चेरी (Prunus avium) दुनिया भर में लोकप्रिय फल है, जो अपने स्वादिष्ट और पौष्टिक गुणों के लिए जाना जाता है। चेरी के फल में विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट्स और फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, जो इसे एक स्वास्थ्यवर्धक विकल्प बनाते हैं। चेरी का उपयोग ताजे फल के रूप में किया जाता है, साथ ही इसके फलों से जैम, जूस, सॉस, पाई और विभिन्न मिठाइयाँ भी बनाई जाती हैं। भारत में, चेरी की खेती मुख्य रूप से ठंडे और पहाड़ी क्षेत्रों में होती है, जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कुछ उत्तर-पूर्वी राज्य। चेरी की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय बनता जा रहा है क्योंकि इसके फलों की मांग लगातार बढ़ रही है और इसका बाजार मूल्य उच्च रहता है। इसके अलावा, चेरी के फलों का निर्यात भी बड़े पैमाने पर किया जाता है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय होती है।

जलवायु

  • चेरी की खेती के लिए ठंडा और शुष्क जलवायु अत्यधिक अनुकूल होता है। चेरी के पौधे विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में पनपते हैं जहां सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे गिरता है। चेरी की खेती के लिए 7°C से 18°C के बीच का तापमान सबसे सही माना जाता है। चेरी के पौधों को सर्दियों में 1000 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर अच्छे विकास के लिए आवश्यक ठंड मिलती है। अत्यधिक गर्मी चेरी की खेती के लिए हानिकारक हो सकती है, इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि फसल ऐसे क्षेत्रों में उगाई जाए जहाँ गर्मी का प्रभाव कम हो। अच्छी तरह से बर्फबारी वाले क्षेत्रों में चेरी की खेती और भी सफल होती है, क्योंकि चेरी के पौधों को सर्दियों में आराम और एक विशिष्ट ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। हालाँकि, अत्यधिक बर्फबारी और जमाव से पौधों को क्षति भी पहुँच सकती है, इसलिए सही जलवायु का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

मिट्टी

  • चेरी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का चुनाव फसल की उपज और गुणवत्ता को प्रभावित करता है। चेरी के पौधों को अच्छी जल निकासी वाली दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए ताकि पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व मिल सकें। मिट्टी में जैविक पदार्थों की अच्छी मात्रा होना अनिवार्य है, जो पौधों को स्वस्थ विकास के लिए आवश्यक पोषण प्रदान करती है। मिट्टी में पानी का जमाव पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचा सकता है, इसलिए जल निकासी का ध्यान रखना जरूरी है। अगर मिट्टी में अत्यधिक अम्लता या क्षारीयता है, तो उसमें सुधार के लिए चूना या सल्फर का प्रयोग किया जा सकता है। फसल की वृद्धि और उपज बढ़ाने के लिए खेत में मिट्टी परीक्षण कराना भी महत्वपूर्ण है ताकि उसके पोषक तत्वों की सही जानकारी मिल सके।

पौधों की किस्में

  • चेरी की खेती में विभिन्न किस्मों का चुनाव जलवायु, स्थान, और बाजार की मांग के अनुसार किया जाता है। भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख चेरी किस्मों में ‘भुर्ला चेरी’, ‘मोरलो चेरी’, ‘बिंग चेरी’, और ‘रेनी चेरी’ शामिल हैं। इन किस्मों के फल आकार, रंग, और स्वाद में भिन्न होते हैं। ‘भुर्ला चेरी’ और ‘मोरलो चेरी’ मुख्य रूप से मीठे और खट्टे फलों के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि ‘बिंग चेरी’ अपनी गहरे लाल रंग और मीठे स्वाद के कारण जानी जाती है। पौधों की उन्नत किस्मों का चुनाव करके किसानों को अधिक उपज और बेहतर गुणवत्ता के फल प्राप्त हो सकते हैं। ग्राफ्टिंग या कलम विधि से उच्च गुणवत्ता वाली किस्में प्राप्त की जाती हैं, जो पौधों को अधिक सहनशीलता और बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती हैं।

पौधों की रोपाई

  • चेरी के पौधों की रोपाई के लिए अक्टूबर से नवंबर का समय सबसे आदर्श माना जाता है, क्योंकि इस समय मिट्टी में नमी बनी रहती है और ठंड का मौसम शुरू होता है। पौधों की रोपाई के लिए 5 से 6 मीटर की दूरी का ध्यान रखना आवश्यक होता है, जिससे पौधों को पर्याप्त स्थान मिले और उनकी जड़ें और शाखाएं सही तरीके से विकसित हो सकें। रोपाई से पहले गड्ढों की खुदाई कर उन्हें जैविक खाद या कम्पोस्ट से भर दिया जाता है, जिससे पौधों को आवश्यक पोषण मिल सके। रोपाई के तुरंत बाद पौधों को पानी देना जरूरी होता है ताकि उनकी जड़ें अच्छी तरह से जम सकें। चेरी के पौधे अपनी शुरुआती अवस्था में नाजुक होते हैं, इसलिए उनकी देखभाल में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। रोपाई के बाद की सिंचाई और निराई-गुड़ाई भी पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है।

सिंचाई

  • चेरी की खेती में सिंचाई का सही प्रबंधन फसल की सफलता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चेरी के पौधों को सही मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन जल जमाव से बचना भी जरूरी है। सामान्यतः, चेरी के पौधों को गर्मियों में हर 10-12 दिन और सर्दियों में 15-20 दिन में सिंचाई की आवश्यकता होती है। अगर पौधों को पानी की कमी होती है, तो फल छोटे और खराब गुणवत्ता के हो सकते हैं। ड्रिप इरिगेशन विधि का उपयोग करके पानी की बर्बादी को कम किया जा सकता है और पौधों की जड़ों तक सीधी पानी की आपूर्ति की जा सकती है। चेरी के पौधों की जड़ों को हमेशा नम रखना चाहिए, खासकर जब पौधे फल देने के चरण में हों। अत्यधिक सिंचाई से बचने के लिए मिट्टी की नमी की नियमित रूप से जांच करना महत्वपूर्ण है।

उर्वरक और खाद

  • चेरी की खेती में उर्वरक और खाद का सही समय पर उपयोग पौधों की बेहतर वृद्धि और उपज के लिए जरूरी है। पौधों को पर्याप्त पोषण प्रदान करने के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश जैसे प्रमुख तत्वों की आवश्यकता होती है। जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, और वर्मी कम्पोस्ट, पौधों के लिए अत्यधिक लाभकारी होते हैं और मिट्टी की संरचना को भी बेहतर बनाते हैं। चेरी के पौधों को साल में दो बार खाद देना चाहिए – एक बार शुरुआती वसंत में और दूसरी बार फसल के बाद। खाद और उर्वरक का सही मिश्रण पौधों को आवश्यक पोषण देता है और उनके विकास को प्रोत्साहित करता है। इसके साथ ही, जैविक खाद का उपयोग करके मिट्टी की गुणवत्ता को लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है।

कीट और रोग प्रबंधन

  • चेरी की खेती में कीटों और रोगों का सही समय पर प्रबंधन आवश्यक है। चेरी के पौधों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीटों में चेरी एफिड, चेरी फ्रूट फ्लाई, और चेरी स्लग शामिल हैं। ये कीट पौधों की पत्तियों और फलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इन कीटों के प्रबंधन के लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना बेहतर होता है। रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू, ब्राउन रोट, और ब्लाइट शामिल हैं, जो पौधों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। फफूंदनाशक का सही उपयोग और रोग प्रतिरोधक किस्मों का चुनाव करके इन समस्याओं से बचा जा सकता है। कीट और रोग प्रबंधन के लिए नियमित निगरानी और उचित देखभाल आवश्यक है।

फसल कटाई

  • चेरी की फसल की कटाई मई से जून के बीच की जाती है, जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं। चेरी के फलों को पकने के बाद सावधानी से हाथों से तोड़ा जाता है ताकि वे दबकर खराब न हों। फसल की कटाई के दौरान यह ध्यान रखना जरूरी है कि फल न ज्यादा पके हों और न ही कच्चे। यदि फसल की कटाई सही समय पर की जाती है, तो चेरी के फलों की गुणवत्ता और स्वाद सर्वोत्तम होते हैं। कटाई के बाद फलों को तुरंत बाजार में भेजा जाना चाहिए या उन्हें प्रसंस्करण के लिए तैयार किया जाना चाहिए। चेरी के फलों से ताजे फल, जूस, जैम, और अन्य प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जिनकी बाजार में उच्च मांग होती है।

उपज और मुनाफा

  • चेरी की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है यदि पौधों की सही देखभाल और प्रबंधन किया जाए। चेरी के पौधों की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन होती है, जो स्थान, जलवायु, और किस्म के अनुसार भिन्न हो सकती है। चेरी की फसल का बाजार मूल्य उसकी गुणवत्ता, आकार, और रंग पर निर्भर करता है। इसके अलावा, निर्यात बाजार में भी चेरी के फलों की उच्च मांग होती है, जिससे किसानों को अतिरिक्त मुनाफा हो सकता है। चेरी की खेती में शुरुआती निवेश अधिक हो सकता है, लेकिन फसल की गुणवत्ता और बाजार में सही मांग होने पर यह व्यवसाय अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकता है।

निष्कर्ष

  • चेरी की खेती एक लाभकारी और समृद्ध कृषि व्यवसाय है, जो किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले फलों और अच्छी आय का स्रोत प्रदान करता है। सही जलवायु, मिट्टी, और किस्म के चुनाव से फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। चेरी के फलों की बढ़ती मांग को देखते हुए, यह व्यवसाय किसानों के लिए नए अवसर प्रदान कर सकता है।

चेरी की खेती के लिए आवश्यक उपकरण (Tools Required for Cherry Farming)

चेरी की खेती में अच्छी उपज और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सही उपकरणों और यंत्रों का उपयोग करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह न केवल खेती के कार्य को आसान बनाता है बल्कि खेती की प्रक्रिया को भी अधिक कुशल और समय की बचत करने वाली बनाता है। यहां चेरी की खेती में उपयोग होने वाले प्रमुख उपकरणों का विस्तृत विवरण दिया गया है:

1. खुदाई और मिट्टी तैयारी के उपकरण

  • कुदाल (Spade): कुदाल का उपयोग खेत की मिट्टी को खोदने, ढीला करने और खेत को समतल करने के लिए किया जाता है। यह उपकरण छोटे और बड़े खेत दोनों में अत्यधिक उपयोगी होता है।
  • फावड़ा (Shovel): फावड़े का उपयोग मिट्टी हटाने, खाद डालने और खेत में पानी की निकासी के लिए किया जाता है। इसकी मदद से मिट्टी को सही तरीके से उकेरा और फैलाया जाता है।
  • हल (Plough): बड़े खेतों में ट्रैक्टर के साथ जुड़ा हल मिट्टी की जुताई के लिए उपयोग किया जाता है। यह उपकरण जमीन की ऊपरी परत को तोड़कर मिट्टी को मुलायम और उपजाऊ बनाने में मदद करता है।
  • कल्टीवेटर (Cultivator): यह उपकरण खेतों में मिट्टी को गहरा करने और खरपतवार को हटाने के लिए उपयोग किया जाता है। कल्टीवेटर मिट्टी में हवा पहुंचाने और नमी बनाए रखने में मददगार साबित होता है।

2. रोपाई और पौधरोपण के उपकरण

  • रोपाई यंत्र (Transplanting Tools): चेरी के पौधों की रोपाई के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जिनमें छोटे कुदाल, शावल और तिरपाल शामिल होते हैं। ये उपकरण पौधों को सही ढंग से लगाने और उनकी जड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना रोपाई करने में सहायक होते हैं।
  • मापने का टेप (Measuring Tape): पौधों के बीच की सही दूरी सुनिश्चित करने के लिए मापने का टेप आवश्यक होता है। यह दूरी पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण होती है, जिससे उन्हें पर्याप्त पोषण और सूर्य का प्रकाश मिल सके।

3. सिंचाई के उपकरण

  • ड्रिप इरिगेशन सिस्टम (Drip Irrigation System): चेरी की खेती में पानी की कुशलता से आपूर्ति करने के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का उपयोग किया जाता है। इस सिस्टम से पानी पौधों की जड़ों तक सीधी और सही मात्रा में पहुंचाया जाता है, जिससे पानी की बचत होती है और पौधों की वृद्धि सही होती है।
  • स्प्रिंकलर सिस्टम (Sprinkler System): स्प्रिंकलर का उपयोग समान रूप से पूरे खेत में पानी के छिड़काव के लिए किया जाता है। यह प्रणाली पौधों की पत्तियों और मिट्टी में नमी बनाए रखने में सहायक होती है, खासकर सूखे इलाकों में।
  • पाइप और होज़ (Pipes and Hoses): सिंचाई के लिए पाइप और होज़ का उपयोग पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए किया जाता है। ये उपकरण सिंचाई के काम को आसान बनाते हैं।

4. उर्वरक और खाद डालने के उपकरण

  • खाद छिड़कने वाला यंत्र (Fertilizer Spreader): यह यंत्र खेत में समान रूप से खाद और उर्वरक डालने के लिए उपयोग किया जाता है। यह मैन्युअल रूप से खाद छिड़कने की तुलना में अधिक प्रभावी और समय बचाने वाला होता है।
  • कुदाल और फावड़ा: जैविक खाद या कम्पोस्ट डालने के लिए कुदाल और फावड़ा का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण खेतों में खाद को सही तरीके से फैलाने में मदद करते हैं।

5. कीट और रोग प्रबंधन के उपकरण

  • स्प्रेयर (Sprayer): फफूंदनाशक और कीटनाशक दवाओं के छिड़काव के लिए स्प्रेयर का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण पौधों को कीटों और रोगों से बचाने के लिए बहुत ही आवश्यक होता है। स्प्रेयर की विभिन्न प्रकार की क्षमता होती है, जैसे हाथ से चलने वाले स्प्रेयर या बैकपैक स्प्रेयर, जो छोटे और बड़े दोनों खेतों में उपयोग किए जा सकते हैं।
  • कैंची (Pruning Shears): पौधों की छंटाई के लिए कैंची का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण चेरी के पौधों की अनावश्यक शाखाओं को काटने और पौधों के आकार को नियंत्रित करने में मदद करता है।

6. कटाई और प्रसंस्करण के उपकरण

  • कटाई कैंची (Harvesting Shears): चेरी के फलों को सावधानीपूर्वक काटने के लिए कटाई कैंची का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण फलों को बिना नुकसान पहुंचाए उन्हें पौधों से अलग करने में मदद करता है।
  • झूला (Picking Bags or Buckets): चेरी की फसल को इकट्ठा करने के लिए झूले या बाल्टी का उपयोग किया जाता है। फसल कटाई के दौरान इनका उपयोग करते समय फलों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सावधानी बरती जाती है।
  • सॉर्टिंग और ग्रेडिंग मशीन (Sorting and Grading Machine): कटाई के बाद चेरी के फलों को गुणवत्ता के अनुसार छांटने और ग्रेडिंग करने के लिए इस मशीन का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण फलों के आकार, रंग, और गुणवत्ता के अनुसार उन्हें छांटने में मदद करता है।

7. सुरक्षा उपकरण

  • दस्ताने (Gloves): चेरी की खेती में कई गतिविधियों के दौरान, जैसे रोपाई, छंटाई, और कीटनाशक का छिड़काव करते समय दस्ताने का उपयोग हाथों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है।
  • मास्क (Mask): कीटनाशक और उर्वरक छिड़काव के समय हानिकारक रसायनों से बचने के लिए मास्क पहनना आवश्यक होता है।
  • बूट्स (Boots): खेती के दौरान पानी, मिट्टी, और कीचड़ से पैरों की सुरक्षा के लिए बूट्स पहनना जरूरी होता है।

निष्कर्ष

चेरी की खेती में आधुनिक और पारंपरिक दोनों प्रकार के उपकरणों का सही उपयोग खेती की प्रक्रिया को सुचारू और प्रभावी बनाता है। इन उपकरणों की मदद से न केवल उत्पादकता में सुधार होता है, बल्कि खेती की लागत में भी कमी आती है।

 

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