शकरकंद की खेती एक अत्यधिक लाभकारी और सस्ती फसल उत्पादन का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह एक पौष्टिक कंद फसल है, जिसमें विटामिन, खनिज और फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक फायदेमंद हैं। शकरकंद की खेती का मुख्य आकर्षण इसकी विविधता में है; इसे उबाला जा सकता है, भुना जा सकता है, या विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, शकरकंद की मांग में निरंतर वृद्धि हो रही है, खासकर हेल्थ फूड के रूप में, जिससे किसानों के लिए यह एक लाभदायक फसल बन जाती है।
शकरकंद की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मिट्टी हल्की से मध्यम चिकनी होती है। इसकी pH मान 5.8 से 6.5 के बीच होनी चाहिए, जो इसे अच्छी तरह से बढ़ने के लिए अनुकूल बनाती है। मिट्टी में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि शकरकंद की जड़ें जलभराव को सहन नहीं कर सकती हैं। मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने के लिए जैविक खाद का उपयोग करना लाभकारी होता है। इसके लिए, रेत और अच्छी गुणवत्ता वाले खाद को मिलाना चाहिए, ताकि मिट्टी की संरचना में सुधार हो सके और जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सके।
शकरकंद की खेती के प्रमुख क्षेत्र मध्य और दक्षिण भारत हैं, जहां की जलवायु इसके विकास के लिए अनुकूल होती है। उत्तर भारत में भी कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। यहां की गर्मी और थोड़ी आर्द्रता शकरकंद की वृद्धि में सहायक होती है। शकरकंद की बुवाई का समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच होता है। बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना आवश्यक है। खेत को हल से जुताई करके, गोबर की खाद मिलाने के बाद अच्छे से कटा जाता है। इससे मिट्टी में पोषक तत्वों का स्तर बढ़ता है और जड़ों के लिए अच्छी स्थिति बनती है। इसके बाद, खेत में 60 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ बनाकर 20 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर शकरकंद के कंदों को बोया जाता है।
कंदों को बुवाई के लिए अच्छे आकार का चुनना चाहिए, जिससे उनकी वृद्धि अच्छी हो सके। बीज कंदों का आकार 100 से 200 ग्राम होना चाहिए। बीजों का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कंद स्वस्थ और बीमारियों से मुक्त हों। बीज कंदों को बुवाई से पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोना लाभकारी होता है, जिससे उनकी अंकुरण क्षमता में वृद्धि होती है।
बुवाई के बाद, फसल की देखभाल के लिए नियमित रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है। शकरकंद को जल की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे अधिक पानी में नहीं लगाना चाहिए। सूखे के दिनों में, फसल को हर 7 से 10 दिन में पानी देना चाहिए, जबकि बारिश के मौसम में सिंचाई की आवृत्ति को कम किया जा सकता है। फसल की वृद्धि के दौरान, खरपतवार नियंत्रण भी आवश्यक है। यह सुनिश्चित करें कि खेत में कोई भी अवांछित पौधे न हों, क्योंकि वे शकरकंद की वृद्धि में बाधा डाल सकते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई के अलावा, Mulching (मल्चिंग) तकनीक भी उपयोगी होती है, जो मिट्टी की नमी बनाए रखने में मदद करती है।
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे प्रमुख पोषक तत्वों का सही अनुपात में उपयोग फसल के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। खाद और उर्वरक का सही समय पर उपयोग करना चाहिए। उर्वरक के उपयोग से पहले मिट्टी परीक्षण कराना चाहिए ताकि उसकी सही स्थिति का पता चल सके। इसके अलावा, फसल की वृद्धि के दौरान हर तीन से चार सप्ताह में तरल उर्वरक का छिड़काव करना लाभकारी होता है।
शकरकंद की फसल लगभग 90 से 150 दिन में तैयार हो जाती है। कटाई का समय तब होता है जब पत्तियों का रंग हल्का पीला होने लगे। यदि पत्तियाँ मुरझाने लगें तो यह संकेत है कि कंद परिपक्व हो गए हैं। कटाई के लिए फसल को धीरे-धीरे निकालना चाहिए ताकि कंदों को नुकसान न पहुंचे। कटाई के बाद कंदों को कुछ समय के लिए धूप में सुखाना चाहिए, जिससे उनमें नमी कम हो जाए और वे भंडारण के लिए तैयार हो जाएं।
शकरकंद की फसल को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें ठंडी और सूखी जगह पर स्टोर करना चाहिए। उचित भंडारण से कंदों की गुणवत्ता बनी रहती है और वे लंबे समय तक ताजा रहते हैं। शकरकंद की भंडारण अवधि सामान्यत: 3 से 6 महीने होती है। बाजार में शकरकंद की मांग को देखते हुए, इसे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जाता है। इसे भाप में पकाकर, उबालकर या भूनकर खाया जा सकता है, और इसे सलाद या अन्य व्यंजनों में भी शामिल किया जाता है।
शकरकंद में विटामिन ए, विटामिन सी, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो इसे एक स्वस्थ भोजन बनाते हैं। इसके सेवन से शरीर को ऊर्जा मिलती है और यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। शकरकंद की खेती न केवल किसानों के लिए आय का एक स्रोत है, बल्कि यह पोषण का भी महत्वपूर्ण साधन है।
इस प्रकार, शकरकंद की खेती एक सरल प्रक्रिया है जो सही तकनीक और प्रबंधन के साथ काफी लाभकारी हो सकती है। यदि किसान सही विधियों का पालन करते हैं और बाजार की मांग को समझते हैं, तो वे इस फसल से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इस फसल की खेती के प्रति जागरूकता बढ़ाने और किसानों को सही तकनीक से अवगत कराने से न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि यह कृषि क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलाव भी ला सकता है। इसके साथ ही, स्थानीय बाजार में शकरकंद की उपस्थिति को बढ़ाकर, किसान अपनी आय को और भी बढ़ा सकते हैं।
परिचय
शकरकंद (Sweet Potato) एक प्रमुख कंद फसल है, जिसे विशेष रूप से अपनी उच्च पोषण मान के कारण दुनिया भर में लोकप्रियता मिली है। यह विशेष रूप से अपने अद्भुत स्वाद, रंगीनता और स्वास्थ्य लाभों के लिए जानी जाती है। शकरकंद में उच्च मात्रा में फाइबर, विटामिन A, C, और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो इसे एक स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ बनाते हैं। इसके सेवन से शरीर को ऊर्जा मिलती है, और यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद करता है। शकरकंद को भाप में पकाकर, भूनकर या विभिन्न व्यंजनों में शामिल करके खाया जा सकता है। इसके साथ ही, इसकी खेती न केवल किसानों के लिए लाभकारी है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के प्रति भी अधिक सहनशीलता प्रदर्शित करती है। इस लेख में, हम शकरकंद की खेती की संपूर्ण प्रक्रिया पर चर्चा करेंगे, जिसमें भूमि चयन, बुवाई, देखभाल और कटाई के तरीके शामिल हैं।
मिट्टी और भूमि चयन
शकरकंद की खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह हल्की से मध्यम चिकनी मिट्टी में सबसे अच्छी तरह से उगती है। मिट्टी की pH मान 5.8 से 6.5 के बीच होनी चाहिए, क्योंकि अधिक या कम pH मिट्टी में पोषक तत्वों के अवशोषण को प्रभावित कर सकती है।
- मिट्टी का परीक्षण: खेती से पहले मिट्टी का परीक्षण कराना अनिवार्य है। यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी है, ताकि उचित उर्वरक का चयन किया जा सके।
- खेत की तैयारी: खेत को अच्छे से जुताई करें और आवश्यकतानुसार गोबर की खाद या अन्य जैविक खाद का उपयोग करें। मिट्टी में कम से कम 15-20 सेंटीमीटर की गहराई तक जुताई करें ताकि जड़ों को अच्छी वृद्धि के लिए पर्याप्त जगह मिल सके।
- जल निकासी: मिट्टी की जल निकासी की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करें, क्योंकि शकरकंद की जड़ें जलभराव सहन नहीं कर सकतीं। मिट्टी में पानी की निकासी के लिए नालियों या मेड़ों का निर्माण करना लाभकारी होता है।
जलवायु
शकरकंद की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसे 20°C से 30°C तापमान में सबसे अच्छा उगाया जाता है।
- उच्च आर्द्रता: शकरकंद की फसल के लिए उच्च आर्द्रता आवश्यक होती है, लेकिन अधिक नमी से बचना भी जरूरी है।
- फसल चक्र: शकरकंद की फसल को उगाने के लिए ऐसी फसलें चुनें, जो इसकी बढ़ती अवधि के दौरान पानी और पोषक तत्वों की प्रतिस्पर्धा न करें।
बुवाई का समय
शकरकंद की बुवाई का सही समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच होता है।
- स्थानीय मौसम का ध्यान: स्थानीय मौसम की स्थिति का ध्यान रखें। जब तापमान लगातार 15°C से ऊपर हो, तब बुवाई शुरू की जानी चाहिए।
बीज कंद का चयन
शकरकंद के बीज कंद का आकार 100 से 200 ग्राम होना चाहिए। स्वस्थ और बीमारियों से मुक्त कंदों का चयन करें।
- बीजों का स्रोत: बीज कंदों का चयन विश्वसनीय स्रोत से करना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की बीमारी या नुकसान से बचा जा सके।
- संविधान: बीज कंदों में न कोई रोग, न ही किसी प्रकार की भौतिक क्षति होनी चाहिए।
बुवाई की प्रक्रिया
- खेत की तैयारी: खेत को 60 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ बनाकर तैयार करें। मेड़ की ऊंचाई 15-20 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि जड़ों को विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।
- बीज बुवाई: मेड़ में 20 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कंदों को बोएं। यह सुनिश्चित करें कि कंदों का अगला भाग ऊपर की ओर हो।
- बीजों का भिगोना: बुवाई से पहले कंदों को 24 घंटे तक पानी में भिगोना लाभकारी होता है। इससे उनकी अंकुरण क्षमता में वृद्धि होती है और उन्हें जल्दी उगने में मदद मिलती है।
सिंचाई
शकरकंद को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- सूखे मौसम में हर 7 से 10 दिन में पानी दें। मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए, सूखे के दिनों में अधिकतर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
- वर्षा के मौसम में सिंचाई की आवृत्ति कम करें। अत्यधिक जलभराव से बचें, क्योंकि यह कंदों की वृद्धि को बाधित कर सकता है।
उर्वरक का उपयोग
- पोषक तत्वों का संतुलन: नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम का संतुलित उपयोग करें। इन तत्वों का सही अनुपात फसल के विकास में महत्वपूर्ण होता है।
- मिट्टी परीक्षण: उर्वरक के उपयोग से पहले मिट्टी परीक्षण कराएं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी है और उनका सही मात्रा में उपयोग किया जा सके।
- तरल उर्वरक का छिड़काव: फसल की वृद्धि के दौरान हर तीन से चार सप्ताह में तरल उर्वरक का छिड़काव करना लाभकारी होता है, जिससे पौधों को तुरंत पोषण मिलता है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारों से बचने के लिए निराई-गुड़ाई करें।
- खरपतवारों की रोकथाम: खरपतवारों की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए शुरुआती अवस्था में निराई करें।
- मल्चिंग तकनीक: मल्चिंग तकनीक का उपयोग फसल के चारों ओर मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए करें।
फसल की देखभाल
- नियमित निरीक्षण: फसल की नियमित देखभाल करें और किसी भी प्रकार की बीमारी या कीटों की पहचान करें।
- पत्तियों की देखरेख: यदि पत्तियाँ मुरझाने लगें, तो यह संकेत है कि कंद परिपक्व हो रहे हैं।
- कीट नियंत्रण: आवश्यकतानुसार कीटनाशक का छिड़काव करें, लेकिन यह ध्यान रखें कि यह किसी अन्य कीटों या लाभदायक कीटों को नुकसान न पहुँचाए।
कटाई
शकरकंद की फसल लगभग 90 से 150 दिन में तैयार हो जाती है।
- कटाई का समय: कटाई का समय तब होता है जब पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाए।
- धीरे-धीरे निकालें: कंदों को धीरे-धीरे निकालें ताकि वे टूट न जाएं। कटाई के समय अत्यधिक सावधानी बरतें, क्योंकि कंद नाजुक होते हैं।
भंडारण
शकरकंद को ठंडी और सूखी जगह पर स्टोर करें।
- भंडारण की स्थिति: उचित भंडारण से कंदों की गुणवत्ता बनी रहती है और वे लंबे समय तक ताजे रहते हैं। शकरकंद की भंडारण अवधि सामान्यत: 3 से 6 महीने होती है।
- कंदों का सही स्थान: भंडारण के लिए कंदों को ठंडी और सूखी जगह पर रखें, जहां तापमान स्थिर रहे।
लाभ और बाजार
शकरकंद की मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों के लिए यह एक लाभकारी फसल बन गई है।
- विभिन्न उपयोग: इसे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जा सकता है, जैसे सलाद, सूप, और अन्य व्यंजन।
- बाजार में मांग: स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ, शकरकंद की मांग में भी वृद्धि हुई है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है।
निष्कर्ष
शकरकंद की खेती एक सरल और लाभकारी प्रक्रिया है, जो सही तकनीक और प्रबंधन के साथ किसानों के लिए आय का एक स्थिर स्रोत बन सकती है।
किसानों को चाहिए कि वे सही विधियों का पालन करें और बाजार की मांग को समझें, ताकि वे इस फसल से अधिकतम लाभ उठा सकें। शकरकंद की खेती न केवल किसानों के लिए आर्थिक लाभ लाती है, बल्कि यह पोषण में भी एक महत्वपूर्ण योगदान देती है। इस प्रकार, शकरकंद की खेती को अपनाने से न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि यह स्वस्थ भोजन की आपूर्ति को भी सुनिश्चित करेगी।
शकरकंद की खेती के लिए आवश्यक उपकरण
शकरकंद की खेती में कई महत्वपूर्ण उपकरणों की आवश्यकता होती है, जो खेती की प्रक्रिया को सुगम और कुशल बनाते हैं। प्रत्येक उपकरण का विशेष कार्य होता है और इनका सही उपयोग खेती की गुणवत्ता और उपज को बढ़ाने में मदद करता है। यहां शकरकंद की खेती के लिए आवश्यक उपकरणों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है:
1. जुताई करने वाले उपकरण (Tillage Equipment)
- प्लाऊ (Plow):
यह उपकरण मिट्टी की जुताई के लिए प्रमुखता से उपयोग होता है। प्लाऊ मिट्टी को पलटकर उसे नर्म और उपजाऊ बनाने का कार्य करता है। इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और पोषक तत्वों का मिश्रण बेहतर होता है। विभिन्न प्रकार के प्लाऊ होते हैं, जैसे कि फरो प्लाऊ और डिस्क प्लाऊ, जो विभिन्न मिट्टी की स्थितियों के अनुसार चुने जाते हैं। - टिलर (Tiller):
टिलर एक महत्वपूर्ण मशीन है जो मिट्टी को छोटे टुकड़ों में तोड़ती है। यह पौधों की जड़ों के विकास में सहायता करती है और मिट्टी के वायुरोधी गुण को बढ़ाती है। टिलर का उपयोग फसल के बाद मिट्टी की तैयारी में किया जाता है, जिससे कंदों की वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। - होक (Hoes):
होक का उपयोग खरपतवारों को हटाने और मिट्टी को समतल करने के लिए किया जाता है। यह साधारण उपकरण छोटे खेतों में अधिकतर उपयोग होता है। इसके उपयोग से मिट्टी की उपरी परत को हवादार बनाया जाता है, जिससे जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है।
2. बुवाई के उपकरण (Sowing Equipment)
- बीज बुवाई मशीन (Seed Sowing Machine):
यह मशीन बीजों को सही गहराई और दूरी पर बोने में मदद करती है। सही दूरी पर बुवाई करने से पौधों के बीच प्रतिस्पर्धा कम होती है, जिससे वे स्वस्थ और मजबूत विकसित होते हैं। बीज बुवाई मशीन का उपयोग बड़े खेतों में किया जाता है, जिससे समय की बचत होती है। - हैंड ब्रोडर (Hand Broader):
छोटे खेतों में बीज फैलाने के लिए इस उपकरण का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण उपयोग में आसान है और किसान इसे आसानी से चला सकते हैं। यह विशेष रूप से छोटे पैमाने पर खेती करने वालों के लिए लाभदायक होता है।
3. सिंचाई उपकरण (Irrigation Equipment)
- ड्रिप इरिगेशन सिस्टम (Drip Irrigation System):
ड्रिप सिंचाई एक आधुनिक तकनीक है, जिसमें पानी को सीधे पौधों की जड़ों के पास पहुंचाया जाता है। यह प्रणाली पानी की बर्बादी को कम करती है और पौधों की जल आवश्यकताओं को सही तरीके से पूरा करती है। इसे स्थापित करने में प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन लंबे समय में यह बहुत प्रभावी सिद्ध होती है। - स्प्रिंकलर (Sprinkler):
यह उपकरण खेत में समान रूप से पानी फैलाने के लिए उपयोग होता है। स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली से खेतों में जल वितरण प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। यह उन क्षेत्रों में उपयोगी होता है जहां पानी की उपलब्धता सीमित हो।
4. उर्वरक छिड़कने के उपकरण (Fertilizer Application Equipment)
- उर्वरक स्प्रेडर (Fertilizer Spreader):
यह मशीन उर्वरक को खेत में समान रूप से फैलाने के लिए उपयोग होती है। इससे फसल को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। स्प्रेडर का उपयोग करने से उर्वरक का सही मात्रा में छिड़काव किया जा सकता है, जिससे फसल का उत्पादन बढ़ता है। - हैंड स्प्रेडर (Hand Spreader):
छोटे खेतों में उर्वरक छिड़कने के लिए उपयोग किया जाता है। यह सरल उपकरण किसानों को अधिक सटीकता से उर्वरक लगाने की सुविधा देता है।
5. निराई और गुड़ाई उपकरण (Weeding and Hoeing Equipment)
- निराई करने वाले उपकरण (Weeding Tools):
ये उपकरण खरपतवारों को हटाने के लिए उपयोग होते हैं। खरपतवारों का नियंत्रण फसल के विकास में महत्वपूर्ण होता है, और इन उपकरणों के माध्यम से समय-समय पर खरपतवारों को हटाना आवश्यक होता है। - कुल्हाड़ी (Axe):
विशेष रूप से बड़े खरपतवारों को हटाने के लिए उपयोग होती है। कुल्हाड़ी का उपयोग अधिक कठिनता से उगने वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
6. कटाई के उपकरण (Harvesting Equipment)
- कंद निकालने की मशीन (Tubers Harvesting Machine):
यह मशीन शकरकंद को जड़ों से निकालने में मदद करती है, जिससे फसल को सुरक्षित और तेज़ी से काटा जा सकता है। इससे कंदों को तोड़ने के जोखिम को कम किया जाता है। - फार्मर कटिंग ब्लेड (Farmer Cutting Blade):
हाथ से कटाई के लिए उपयोग किया जाता है, खासकर छोटे खेतों में। यह सरल उपकरण किसानों को आसानी से कटाई करने में मदद करता है और फसल के नुकसान को कम करता है।
7. भंडारण उपकरण (Storage Equipment)
- भंडारण बक्से (Storage Bins):
शकरकंद को सुरक्षित रखने के लिए उपयुक्त तापमान में भंडारण के लिए उपयोग होते हैं। भंडारण बक्से को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां तापमान और आर्द्रता नियंत्रण में रहे। - जाल और तराजू (Net and Weighing Scales):
भंडारण के दौरान उत्पादों को ताजा रखने और उनका वजन करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है। उचित भंडारण और वजन करने से गुणवत्ता बनी रहती है।
8. कीटनाशक और रोग नियंत्रण उपकरण (Pesticides and Disease Control Equipment)
- स्प्रेयर (Sprayer):
कीटनाशक और फफूंदनाशकों को पौधों पर छिड़कने के लिए उपयोग किया जाता है। यह हाथ या बैटरी संचालित हो सकता है। स्प्रेयर का नियमित उपयोग कीटों और रोगों को नियंत्रित करने में मदद करता है। - पेस्ट कंट्रोल टेप्स (Pest Control Traps):
यह कीटों को फंसाने के लिए उपयोग होते हैं। इनका उपयोग पर्यावरण के अनुकूल तरीके से कीटों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
9. सुरक्षात्मक उपकरण (Protective Equipment)
- हाथ के दस्ताने (Hand Gloves):
खेती के दौरान हाथों की सुरक्षा के लिए इनका उपयोग किया जाता है। दस्ताने किसानों को मिट्टी, कीटनाशक और अन्य हानिकारक पदार्थों से बचाते हैं। - मुखौटा (Mask):
कीटनाशकों का उपयोग करते समय स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए इसका उपयोग अनिवार्य है। यह किसानों को हानिकारक रसायनों से बचाने में मदद करता है। - चश्मा (Goggles):
कीटनाशक और फफूंदनाशकों से आंखों की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। आंखों को सुरक्षित रखने के लिए इसे पहनना चाहिए।
इन उपकरणों का सही उपयोग शकरकंद की खेती में सहायता करता है और किसान को बेहतर उत्पादन प्राप्त करने में मदद करता है। उचित उपकरणों का उपयोग न केवल श्रम की बचत करता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता और उपज को भी बढ़ाता है। खेती के प्रत्येक चरण में सही उपकरणों के चयन और उपयोग से उत्पादन में सुधार होता है, जो अंततः किसानों की आय को भी बढ़ाता है।